अलमस्त नहीं मैं बचपन की तरह
ज़हन में यादों के टुकड़े जा-ब-जा हैं-
नम आँखे भी मेरी अक्सर बेफिक्र मुस्कुराती हैं,
जीने का सलीका ऐसा मेरी माँ जो मुझें सिखाती है!!
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चाहे तो तनख्वाह ले लो लेकिन
मेरे बाद मेरे लिए इतना कर देना
खुद की फिक्र करना सीखकर
बस मुझको बेफिक्र कर देना-
आँखों में चमक,होंठो पर मुस्कुराहट,लहज़ा बेफ़िक्रा रहेगा
तुम्हें खोने का दर्द फ़क़त मुझ तक रहेगा
यूँ सबको यक़ीं दिला है कि मैंने भुला दिया है तम्हें
मगर ये सच फ़क़त झूठ हैं सिर्फ मुझ तक रहेगा-
दिन कमाने में और रात सोचने में कट रही है
रफ़्ता-रफ़्ता जिंदगी बस यूँ ही कट रही है
मेरी चाहत है कुछ शामें बिताऊँ जुल्फों में तेरी बेफ़िक्र होकर
मगर जरूरतों की तेग़ से मेरी चाहते कट रही है-
फिक्रमंद होकर भी,
बेफिक्र नज़र रखता है,
वो आईना है मेरा,
मेरी सारी खबर रखता है,
भूल जाती हूँ
कभी जो खुद को,
सांझ ढले,
दिए की लौ सा
कुछ
अपना असर रखता है!-
ख्वाहिशो का कारवाँ रेतीले वक्त पर बने मिटे,
आह बन धुआँ उड़े ,बादलों में घुले मिले,
दो बूँद सुकून के ज्यूँ हीं हम पीने चले,
बादल फट पड़े ।
बेफिक्र जब तक चले रास्ते सरपट रहे,
आँधियाँ चलती रही तिनको से हम कब डरे,
नज़रो को बंद किए हम हो बेफिक्र चले ।
इम्तेहाँ देते गए ,नतीजों से बेपरवाह रहे,
ख्वाहिशो का कारवाँ लिए हर मोड़ पर मुड़े चले,
आँधी हो, तूफान हो कि पग में काँटे चुभे,
हम बेफिक्र रहे ,बिना रूके बढ़ते चले ।
वक्त की दरिया में जीवन को थामे,हम बहे चले,
आशा-निराशा हो,हम सब सहते चले,
थमे तो शिकवा करें,हम तो बेफिक्र हो,
वक्त की दरिया में बहते चले ।।
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सफर ताउम्र है, निगहबां खुदा है तेरा,
बेफिक्र चल मंजिल की तरफ,
जमीं ना सही आसमां है तेरा !-
बड़ी बेफिक्र सी मुहब्बत है तुम्हारी,
अदा भी देखते हो, इक अदा के साथ....-