गंगा का घाट से इश्क करना,कुछ यूँ मैं तुझसे इश्क करना चाहती हूँ..,
प्रयागराज में नदियों का संगम,जैसे रूह को रूह से मिलाना चाहती हूँ!!
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अमृत भूमि प्रयागराज जन चेतन आध्यात्मिक का संगम,
छलका अमृत, हुआ देवत्व, हुआ तब यह दुर्लभ संगम।
देश विदेश में हुआ चर्चित, खींचे चले आए जैसे चुंबक
उमड़ पड़ा अथाह जन सैलाब मनभावन दृश्य विहंगम।
रज पद स्पंदन सनातन गौरव स्वर्ग सम त्रिवेणी परिवेश,
आस्था की डुबकी, तन मन प्रफुल्लित, आत्मिक जंगम।
पुण्य सलिला तीर पर, यज्ञ अनुष्ठान की प्रज्वलित लौ,
जैसे देव स्वर्ग से अनुभूदित हर क्षण आशीर्वाद हृदयंगम।
वैचारिक नैतिक सात्विक से ओतप्रोत सर्वस्व सर्वत्र ओर,
जो बने हिस्सा भाग्यशाली, आधि व्याधि तज हुए सुहंगम।
हर एक के जीवन में होता यह प्रथम और अंतिम अवसर,
जीवन सुफल, दुःख दर्द निष्फल, जैसे यह मोक्ष आरंगम।
आत्मशुद्धि, वैचारिक मन मंथन का सुव्यस्थित आश्रय,
नश्वर तन का अटल अंतिम सत्य, यही संगम यही मोक्षम
सदियों से बना यह अति उत्तम दुर्लभ खगोलीय संयोग,
बहुचर्चित, दिव्य, अलौकिक इस महाकुंभ का शुभारंभ।
_राज सोनी-
तुम ताजमहल के आगे सेल्फी लेती,
मैं प्रयागराज कुंभ में लेता स्नान प्रिये।
भगवाधारी तिलक लगाकर तोड़ता हूँ,
तुम्हारे ब्रांडेड लिपस्टिक का गुमां प्रिये।-
शहरों के नाम
चाहे तो सड़कों के भी नाम
बदल दो...
अल्लाहआबाद
इलाहाबाद या
प्रयागराज
क्या है मेरे शहर का नाम
कौन तय करेगा...
मेरी स्मृतियों में सुरक्षित हैं एक शब्द ' इलाहाबाद '
जबान पर रटा हुआ है एक शब्द
जिह्वा से हमेशा सटा हुआ...
टिकट पर
साफ साफ लिखा है प्रयागराज
पर तय है—
कल सुबह प्रयागराज नहीं
पहुॅंचुॅंगा तो— इलाहाबाद ही...।-
कब तक बोलोगे अभी नहीं बाद में !
कुछ दिन तो गुजारिये इलाहाबाद में !!-
शायद जून का महीना था
नगर का वैभव
कछार की रेत पर पैर पसारे पड़ा था...
और आस्था की परछाई
गंगा में लम्बवत स्नान कर रही थी
जैसे ही पानी जरा सा हिला
दिख गया मुझे तिलमिलाता हुआ कचरा
कचरे का आतंक— कविता में बहता दिखने लगे
ये जनवादी कवि के लिए कोई नयी बात नही थी..
जिस समय मै कचरे के खिलाफ तर्क कर रहा था
माँ सिर झुकाये
गंगा मैया को अर्घ्य दे रही थी
उन बूढ़ी झुकी हुई आँखों में
जलहरी का देवता— कँपकँपाता दिखाई दे गया
जिसने आदिकाल से पानी को
जैसे-तैसे— अब तक बचाये रखा है..
वहाँ उस समय
मेरा संभाषण जल मंत्र के विरूद्ध था
और आस्था के खिलाफ भी...।-
तु लिख दे तो गीत,गुनगुना ले तो साज़ हो जाऊँ मैं
कर वादा हर बरस कुंभ की तरह आने का,
तो तेरे रंग में रँगा प्रयागराज हो जाऊँ मैं💞-