पाखी - Final Chapter 1
पाखी ने घड़ी देखी शाम के सात बजने वाले थे और कमल के ऑफिस से लौटने का समय हो गया था। जिस तरह पाखी हमेशा अपने आंसू पोचा करती थी आज भी पाखी ने फटाफट अपने आंसू पोछे। उसे याद आया कि कमल ने शाम को ऑफिसर्स की पार्टी में साथ चलने को कहा था।
पाखी ने वो खत वापस उसी पुस्तक में रखा और पुस्तक वापस अलमारी के कोने में छुपा दिया
लाल रंग की साड़ी में पाखी फटाफट तैयार हो गई।
सफेद रंग की एंबेसडर घर के बाहर रुकी। कमल अंदर बैठ कर पाखी का इंतजार कर रहे थे। पाखी बाहर आई और गाड़ी में बैठ गई। ड्राइवर ने गाड़ी चला दी।
गाड़ी कुछ दूर ही पहुंची थी। पाखी ने डरते हुए कमल की और देखा और कहा
पाखी : आपसे आज कुछ मांगू तो आप इनकार तो नहीं करेंगे।
कमल : इनकार.. सब कुछ तो तुम्हारा है जो मांगना है मांगो। कभी माना किया है क्या किसी चीज के लिए
पाखी :निशा के साथ एक लड़का पढ़ता है सुबोध। बहुत अच्छा लड़का है। उन दोनों की नौकरी कॉलेज की तरफ से एक ही कंपनी में लगी है। अब तो दोनों एक साथ नौकरी भी करने लगेंगे। लड़की बड़ी हो गईं है। सुबोध और पाखी एक साथ बहुत खुश रहेंगे। मैं चाहती हूं पाखी और सुबोध की शादी भी हो जाए
कमल ने पाखी की तरफ प्रश्न भारी निगाह से देखा
कमल: क्या पाखी उस लड़के से प्यार करती है।
to be continued-
Read story of "paakhi" on my profile in this "your story writing month #yostowrimo" read every chapter to unfold the hidden cover of her life. even a small detail about her will be a spoiler
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पाखी - Chapter 6
मुझे चाहते हो तो मेरे पिता से मिलने जरूर आना और उनकी इजाजत लेे मुझे अपने साथ ले जाना।
अपना वादा निभाने तुम्हारे पिता से मिलने भी आया था
याद है मुझे तुम्हारे पिता ने मुझे अपने सामने बिठाया है।
पूछा था मुझसे की जानते हो पाखी जिस से शादी कर रही है वो कितना कमाता है
जानते हो जितने के तुमने पूरे कपड़े पहने है उसमे उसका सिर्फ एक परफ्यूम आता है
तुम्हारे पिता ने मुझसे पूछा क्या तुम मेरी बेटी को वो सब दे पाओगे।
जितना वो आईएएस कमल प्रकाश शर्मा उसे देगा उतना क्या उसके लिए कर पाओगे
मैंने तुम्हारे पिता से कहा पैसों से मोहब्बत नहीं खरीदी जाती खुशी जो है वो पैसों से नहीं आती
सच यह है कि मैं आपकी बेटी को चाहता हूं उसकी खुशी को पूरा कर सकता हूं यह मानता हूं
यह कहकर मैंने तुम्हारी तरफ हाथ बढ़ाया था पर पिता की वो आंखे देखकर तुम्हारा मन घबराया था।
उसके बाद नाज़ाने कितने खत मैंने तुम्हे लिख डाले
और तुमने अपने आखिरी खत में लिखा नहीं मानेंगे घर वाले।
तुम जिस से भी शादी करना उसी की हो जाना
पर यह आशिक़ तुम्हारी याद में तड़पेगा यह मत भुलाना।
तुम खुश रहो बस यही फरियाद करता हूं बस यह याद रखना मैं तुम्हे आज भी याद करता हूं।
तुम्हारा बस तुम्हारा
आशीष"
पाखी ने घड़ी देखी शाम के सात बजने वाले थे और कमल के ऑफिस से लौटने का समय हो गया था।
to be continued-
"पाखी"
नमस्कार दोस्तों आज से मैं एक स्वरचित कहानी लिखने जा रहा हूं। जिसका शीर्षक है "पाखी"। Your Qoute की शब्द सीमा होने के कारण हो सकता है यह कहानी कई अध्याय तक चले। सम्पूर्ण कहानी को पढ़ने के लिए #पाखी को खोजे या फिर मेरे चैनल को फॉलो करे।
धन्यवाद-
पाखी - Final Chapter 2
कमल: क्या निशा उस लड़के से प्यार करती है।
पाखी ने डरते हुए हामी में सर हिलाया।
कमल : अरे तो फिर इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। अगर दोनों एक दूसरे को चाहते है तो शादी भी होनी चाहिए
पाखी : मतलब आप को उन दोनों के रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं है। मैं तो बेवजह है डर रही थी।
कमल ने हल्का सा समय लिया और पाखी की तरफ देखकर कहा "वो अलमारी के कोने में जो खत तुमने अपनी किताब में छुपा रखा है वो खत मैंने पढ़ा है।मै समझता हूं प्यार को खोने का दर्द क्या होता है पाखी। लेकिन शायद यह बात मैं तुमसे कहा ना सका। मैंने तुम्हे अपना प्यार खोते देखा है। मैं नहीं चाहता कि मेरी बेटी का प्यार भी ऐसे ही खो जाए।
पाखी ने कमल को देखा उसकी आंखो में आंसू थे उसे एहसास है नहीं था जिस दर्द को वो सालो से अपने अंदर छुपा रही थी उसके गवाह कमल भी थे। पाखी ने अपना सर कमल के कांधे पे रख दिया।
ड्राइवर ने FM चालू किया और FM पर गाना बज रहा था " हर किसी को नहीं मिलता यहां प्यार ज़िन्दगी में खुश नसीब है जिनको है मिली यह बहार जिंदगी में
समाप्त-
पाखी Chapter 1
मार्च का वो महीना ना ज्यादा ठंडा होता है ना गरम। हल्की हल्की धूप खिड़की से झांक रही थी और खिड़की के पास खड़ी पाखी अपने झरोखे से बाहर झांक रही थी। दोपहर के 12 बजे FM पर गाना बज रहा था "हर किसी को नहीं मिलता यहां प्यार जिंदगी में" । पाखी ने भी गाने के साथ स्वर मिलना शुरू किया।
"खुश नसीब है जिनको है मिली यह बहार जिंदगी में।
श्याम : मालकिन जब इतना अच्छा गा ही लेती है तो कहीं कोशिश क्यूं नहीं करती है वैसे भी साहब की आला अफसरों में बड़ी पहचान है
पाखी : तेरे साहब को पता चल गया मेरे ऐसे भी शौक है तो गाना भी बंद हो जाएगा मेरा।
श्याम : इतने बुरे भी नहीं है मेरे साहब आप तो बस कमिया ही ढूंढती रहती है।
पाखी :ज्यादा अपने साहब का पक्ष ना लेे और रसोई में मैंने दाल चढ़ाई है दो सिटी आ जाए तो बंद कर देना।
यह कहकर पाखी ने अपने बालों पे कंघी को सहलाना चालू किया। तभी फोन पर एक घंटी बजी। उन दिनों हर किसी के घर पर फोन नहीं हुआ करता था। कानपुर जिले में रॉब था आई ए एस कमल प्रकाश शर्मा का। पाखी ने फोन उठाया।
कमल (पाखी के पति): हैलो पाखी, आज शाम जिले के उच्च अधिकारियों की पार्टी है तुम शाम को तैयार रहना शाम को ऑफिस के बाद हम सीधे वहीं जाएंगे।
पाखी ने हामी भरी और फोन का रिसीवर नीचे रख दिया। तभी दरवाजे की घंटी बजी। पाखी ने दरवाजा खोला तो हैरान रह गई।
पाखी : निशा तू अचानक से यहां कैसे
to be cont.-
निशा : मां पिताजी कुछ ना कहेंगे मैं जानती नहीं हूं क्या। बचपन से कभी हाथ भी नहीं उठाया है।
पाखी : क्योंकि इस घर में आजतक तूने ऐसा कोई कदम नहीं लिया। तेरे विवाह का निर्णय तेरे पिता को लेना है। जैसे तेरे नानाजी ने मेरे विवाह का निर्णय लिया। हालांकि तुझे कुछ दिन सही नहीं लगेगा पर तेरे पिता तेरा अच्छा भला जानते है। वो कभी नहीं चाहेंगे उनकी बेटी उनके विरूद्ध कुछ निर्णय ले।
निशा : नानाजी ने जो आपके लिए सोचा आपके लिए कितना अच्छा था मैं जानती हूं। आपने शादी तो करली पर क्या आप पिताजी से आज तक प्यार कर पाई है।। आप बस अपनी जिम्मदारियों का वहन अच्छे से कर रही है और कुछ नहीं।
पाखी से ये सब सुना ना गया उसने आव देखा ना ताव सीधे निशा के गाल पे तमाचा रसीद किया। निशा गुस्से में तिलमिला गई और घर छोड़ के चली गई। पाखी उसे पीछे से आवाज देती रही पर उसने एक ना सुनी।
पाखी : श्याम रोको उसे उसके पिता को क्या जवाब दूंगी ।
पाखी जोर से चिल्लाई बेटा रुक जा लेकिन निशा कहां रुकने वाली थी। पाखी को लगा शायद उसे निशा पे यूं हाथ नहीं उठाना चाहिए था लेकिन शायद सच कड़वा होता है। पाखी को आज अपने विवाह पर संदेह होने लगा। पाखी अपने कमरे में चली जाती है दरवाजा बंद करके कोने में बैठ कर रोने लगती है।
फिर अलमारी के कोने में छूपी किताब निकालती है। उसमे रखे एक खत जिसको पाखी ने बरसो से संभाल के रखा था
To be continued...-
पाखी - Chapter 5
फिर पाखी अलमारी के कोने में छूपी किताब निकालती है। उसमे रखे एक खत जिसको पाखी ने बरसो से संभाल के रखा था उसे पढ़ने लगी
प्यारी पाखी,
इसे मेरा आखिरी खत समझना। और जो वो सारे पल हमने साथ बिताए है उन्हें अपनी यादों में रखना
याद है तुम्हें जब तुम पहली बार मुझसे टकराई थी
बाग का माली तुम्हें पकड़ ना लेे इस वजह से फूलों के झुरमुट में चली आयी थी
मेरा मुंह जोर से दबा तुमने कहा माली को कुछ ना बताना
यह आधे आम तुम रख लो पा यह बात किसी को ना बताना
मै तो जैसे तुम्हारी आंखो में ही खो गया था एक नजर का जो प्यार था वो जैसे मुझे हो गया था
तुमने कहा तुम्हें जो चाहिए वो मुझसे कहना
और अगर यह बात मेरे पिता को पता चली तो वो बंद कर देंगे मेरा घर से भी निकालना
मैंने कहा भूल तो तुमने की है अब इसका हरजाना भी भरो
यह आधे आम जो तुम मुझे दे रही हो यह तुम ही रखो
अगर मुझे कुछ देना चाहती हो तो रोज़ मिलने आना और एक आम रोज का मुझे खुद दे जाना
रोज मिलते मिलते तुम्हें भी नज़ाने कब मुझसे प्यार हो गया
एक दिन का वादा सौ जन्मों में बदल गया।
हां वो दिन भी मुझे याद है जिस दिन तुम रोते रोते मुझसे मिलने आयी थी
तुम्हारे पिता ने तुम्हारा रिश्ता किसी IAS कमल प्रकाश शर्मा से कर दिया है
यह बात तुमने मुझे बताई थी
मुझे चाहते हो तो मेरे पिता से मिलने जरूर आना और उनकी इजाजत लेे मुझे अपने साथ ले जाना।
To Be continued-
पता नहीं वो कौन सा इश्क़ हुआ हैं मुझे उनसे ,
की आज भी उनके मैसेज पढ़कर रोते हैं हम ,;
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पाखी : तेरे साथ आया है लेकिन है कहां और आया कहा है मुझे तो नहीं दिख रहा।
निशा : मां वो बाहर खड़ा है।
पाखी : बाहर खड़ा है तू पागल है। बेचारे को दो घंटे से बाहर खड़ा कर रखा है। अंदर क्यूं नहीं लाई उसे। लेकिन उसे लाई ही क्यूं है। अरे जवाब देगी या ऐसे ही चुप रहेगी।
पाखी दरवाजा खोलती है कोने में सुबोध पसीने से सन्न खड़ा होता है पाखी उसे अन्दर आने को कहती है।
निशा : मां मैं हिम्मत ही नहीं कर पाई उसे लाने की। मैं और सुबोध आपस में एक दूसरे से प्यार करने लगे है। मैं आपसे यह बात छुपा ना सकी इसलिए सुबोध को अपने साथ ले आयी ताकि हम दोनों मिलकर यह बात आपको बता सके।
सुबोध : आंटी मैं और निशा....
पाखी : बेटा तुम थोड़ा वहा बैठोगे पहले में निशा से पूछ लूं।
सुबोध कोने में बैठ जाता है
पाखी : इतनी बड़ी हो गई की अपनी ज़िन्दगी के फैसले खुद लेने लग गई। इसलिए तुझे इतने बड़े कॉलेज में भेजा था कि हमारे विश्वास को इस तरह तोड़ सके।
निशा : मां हम दोनों साथ पड़ते थे अब साथ में नौकरी भी कर रहे है। सुबोध बहुत अच्छा लड़का है।
पाखी : साथ में पढ़ते हो नौकरी भी साथ करते हो और अब साथ में रहोगे भी सारे फैसले खुद ही कर लो । हमसे पूछने की जरूरत क्या है। तेरे पापा लो पता चलेगा तो जान ले लेंगे तेरी और मेरी भी।
निशा : मां पिताजी कुछ ना कहेंगे मैं जानती नहीं हूं क्या। बचपन से कभी हाथ भी नहीं उठाया है।
to be continued....-