उसने पूछा, "ईद मनाते हो ? "
हमने कहा, "तुम्हें देखकर "
~दीपा गेरा
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जो बिछड़े हैं उनको मिलवा दे....
दिवाली अपने आप हो जाएगी...
~ दीपा गेरा
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हर दर पे गंगा है, हर घर में भोले है
कोई इसको शिवपुरी,कोई काशीनगरी बोलें हैं
वरुणा और असि के मध्य बसा,
कोई इसे बनारस तो, कोई वाराणसी बोलें हैं
~दीपा गेरा
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हमने बोला, "कोई वाज़िब वजह तो दो बदलने कि..."
उसने बोला, "साल बदल रहा है...!"
~दीपा गेरा
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रावण आज भी जल रहे
नृशंस /बलात्कारी कहा मर रहे ?
अवतरण लो माँ अनुरोध है...
अब तो विनाश हो...!
दुर्जनों का नाश हो...!
(शेष अनुशीर्षक में)
~दीपा गेरा-
जनवरी, तू हर बार बिना भूले नया साल लाता है...
मेरा प्यार ही हर बार क्यों लाना भूल जाता है...?
~दीपा गेरा
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"क्या रिश्ता है तेरा मेरा"
अचानक से मिल गए ...
ऐसे मिले कि दिल गए ,
फिर क्या था,तेरी बातों मे सिल गए
कुछ उलझे थे,अपने में,
तुमसे मिलकर...खुल गए !!
कुछ अच्छी,बुरी कुछ,कुछ रूमानी
हर पल बुनते हम नई कहानी
कुछ पलो को चुरा के लाते थे
उसमे ही खो जाते थे...
कभी हॅसते,कभी रोते
कभी अपने,कभी चुभते
फिर भी रहते दोनो साथ
जाने क्या थी...?
उस समय में ऐसी बात !!
बिन सोचे,बिन समझे
बिना मिले,कर लिए वादे
निभायेंगे जैसे भी...बच्चों सा था मिजाज !!!
-Deepa Gera
"क्या रिश्ता है तेरा मेरा"
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सूरज को भी चाँद होना है,
यूँ ही बस दाग-दाग होना है...
चाँद को भी एक और चाँद चाहिए...
सुन सके उसे कोई ऐसा राज़दार चाहिए...
~दीपा गेरा
(पूरी रचनाअनुशीर्षक में...)
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यूँ ही नहीं मुस्कुराती हूँ मैं...
माँ को मुस्कुराता देख, मुस्कुराती हूँ मैं...
~दीपा गेरा
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