रातें करती हैं इंतज़ार
नींदों का ख़्वाबों का,
और मृत्यु हमारा!
~दीपा गेरा
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14 DEC 2024 AT 23:10
18 JAN AT 22:50
जहा पतझड़...वही बसंत है
इश्क का कुछ ऐसा ही रंग है...
मानो या ना मानो इश्क भी जंग है !
~दीपा गेरा
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10 AUG AT 1:43
देर तलक किया इंतज़ार
पूर्णिमा के चाँद का...
वो भी अधूरा था हमारे प्यार-सा
~दीपा गेरा
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12 MAR AT 20:19
ना तू मेरे साथ था, ना तू मेरे साथ है
फागुन की फुहार पर दिल मेरा उदास है
पतझड़ के आगमन पर बसंत करता आगाज़ है
~कालजयीदीपि
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26 APR AT 17:08
डाकिया को तो मालूम है पता तेरा
पर मुकर जाता है नाम सुनते ही मेरा
ऑनलाइन हीं होता है आजकल साँझ और सवेरा
~कालजयीदीपि
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15 FEB AT 16:21
माँ और भगवान दोनों सम हैं
ना कोई ज्यादा हैं ना कोई कम हैं
तस्वीरों में देखना मुझे नहीं पसंद हैं
~दीपा गेरा
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