पहली दफा इश्क पे ऐतबार हुआ......
मैंने पलकें क्या झुकाई,,
हर दिन बस इतवार हुआ❤-
यही है हमने सीखा,जाने वाले को दफा कीजिये,
जो साथ हो अपने,साथ उसके मजा कीजिये।-
एक दफा मैंने,उनके मेहँदी वाले हाथों की तारीफ क्या की,
अब वो रोज नई-नई मेहँदी रचाती है, मुझे दिखाने के लिए-
वो जितनी बार भी मुझसे दगा करती है .
उसकी चाहत दिल में और बढ़ा करती है .
बजह तो चाहिए जमाने में नफरत के लिए ,
सच्ची चाहत तो बेवजह ही हुआ करती है .
तेरे गिरने के लिए और भी थे मकाम बड़े ,
क्यों हर दफा मेरी नजरों से गिरा करती है .
आज दिया नहीं कोई ज़ख्म नया उसने हमें ,
कोई पता करो खैरियत से तो रहा करती है .
"राज"ने भी करना है दाखिल मुकदमा यारो ,
दिल तोड़ने वालों पे क्या दफा लगा करती है .-
घुटन होने लगी है जज्बातों को इन कैद पन्नों में
कोई दफा लगाकर इन्हें कुछ दिनों की जमानत दे दो-
इश्क़ के खेल में वो जीतती है हर दफा
सबसे वफ़ा करती है कैसे कहूँ उसे बेवफा-
मुझको तुम अपनी वफ़ा बना देना,
जितना बने उतनी दफ़ा बना देना,
बसा लेना ख़ुद में उन साँसों के संग,
जो मिले न जगह तो हवा बना देना ।-
मैं नफरत और मोहब्बत एक साथ कर नहीं पाऊंगा
एक काम कर तू अब दफा हो यहां से।-
वो जो ऐसे ख़फ़ा हो गए हैं
लगता है जैसे कि अच्छा हुआ है
जाना ही था जिनकों हमारे जिंदगी सें
वो सभी लोग जिंदगी से दफ़ा हो गये हैं-