इक हँसी लिए
अपने लबों पर,
छुपा कर अपनी
हर तड़पन को,
कर गुमराह हर
इक आंसू को,
उस लम्हे बस
उस प्यारी सी,
मुस्कुराहट को,
दिल भरने तक,
महसूस करके
खुश होने को,
तड़प रहा हूँ मैं...
(see caption)-
तड़प इन 'निगाहों' की समझेगा कौन
जो मुद्दा है बाजार , बन बैठा 'मौन'
किराये का गम है , किराये की खुशियां
नही जानता कब 'गिरे' कितना कौन
नई उम्र का सब 'तजुर्बा' है चाहे
बुढ़ापे में 'सठियाई' , है सारी कौम
अरे वाह रे... क्या तसल्ली है पाई
तबाही के दिल का , नज़रिया है 'मौन'
नज़रिया न बदलोगे , फब्ती कसोगे
जो घर मे तुम्हारे वो 'गरिमा' है कौन-
कोई नाराजगी है तो बयां कीजिये
हमारे अश्कों पे जरा सी दया कीजिए
यूँ तड़पा रहे हो जो खामोश रहकर हमें
हमारा जख्मी दिल देखकर शर्मो-हया कीजिए-
सुबह भी सोई रहती है साथ मेरे अब
इसने मेरी रातों को कराहते जो सुना है।-
एक शजर ने पत्ते खोये थे, उस पतझड़ के जमाने में
तब हम भी बहुत रोये थे, किसी अपने के छोड़ जाने में
आंखों में दर्द लिए, गली गली भटके थे हम भी
एक हिजाब ने संग न दिया, हमारे आंसू छुपाने में
कैसे याद ना आए उन्हें, वो लम्हे थे हजारों शामों के
कैसे कुचल दिए वो फूल, जो रखे थे अलमारी के खाने में
वो मचल रहे थे छत पर, किसी गैर की बाहों में
यहाँ हमारी मृत देह पड़ी थी, उसी छत के नीचे मैखाने में
अरे चंद सांसे बची थी, वो भी छीन लेते जाते जाते
आखिर क्या मिल रहा है तुम्हें, इन सांसो को तड़पाने में-
मोहब्बत भी ज़रूरी होती है तड़पना भी ज़रूरी होता है
आंखों के आँसुओं का बनकर मोती बरसना भी ज़रूरी होता है।-
कितनी तड़प है इन दूरियों में चाहत है तुमसे नजदीकियों की,
भले अँधेरा खुद के तले हो प्रकाश प्रसरण है आदत जलते दियों की।
-ए.के.शुक्ला(अपना है!)-
गर बात मोहब्बत की होती तुम्हे पा लेता मैं
पर लोग कहते हैं तुम बेइंतेहा खूबसूरत हो।-