हैं रोने रुलाने की आदत ज़रा सी,
मिलता है क्या ?
बस राहत ज़रा सी ।
पूछते हो क्या खो बैठे हैं हम ?
बस अधूरी सी है, चाहत ज़रा सी ।
मिल जाते हैं टूटे हुए दिल, हर महफ़िल में
बना लेते हैं जगह वो इस दिल में
हम रिश्ता ऐ दर्द बना लेते हैं
बाकी हैं मुझमे शराफत ज़रा सी
है रोने रुलाने की आदत ..........
सोचा ना था दर्दो मे ढल जायेगी
कहानी अपनी यूँ बदल जायेगी
हुनर पाया ये रोग लगाके
बना लिया शायरी को इबादत ज़रा सी
आदत हैं, चाहत हैं, राहत हैं ज़रा सी....-
6 JUL 2020 AT 10:13