पत्र
हाँ तो प्रारम्भ सुबह से करता हूँ उठते ही तुम्हारी रात की कही हुई कुछ बातें याद आती हैं , कि उठ कर थोड़ा टहल कर आया करो , खाली पेट नही रहा करो , चाय पिया करो अच्छी होती है पर खाली चाय ही मत पिया करो उसके साथ कुछ खा लिया करो , नही तो नुकसान करती है ,बिल्कुल हाकिम की तरह समझाती हो न , सुबह उठ कर सबसे पहले तुमको शुभप्रभात बोल कर सब करता हूँ मैं , खुश रहने को बोला था न तुमने देखो अब खुश रहता हूँ , समय पर खाना भी खाता हूं मन मे कुछ हो तो ये दोस्त मैं सब तुम्हे बताता हूँ , कहने को तो बातें पहले भी होती थी पर सोचा नहीं था कि इन कुछ दिनों की बातें से मुझे एक ऐसा दोस्त मिलेगा जो मुझे समझेगा , मुझे सुनेगा और समझायेगा , गलती करूँगा तो डाँट भी लगाएगा , घमंड तो नही करता मैं लेकिन कभी कभी हो जाता है कि भगवान नें बड़े चुन चुन कर दोस्त दिए है मुझे , बचपना तो तुम में भी कम नही है , पगलिया ही हो एक दम न कुछ भी सोचने लगती हो , और हाँ ज्यादा न सोचा करो वो क्या है न तुम ही अकेली नही हो कोई और भी है जो अकेला बैठा है सिर्फ तुम्हारे लिए , तुम्हारे ख़्वाबों को पूरा करेगा वो समझी आएगा तुमको दुल्हनियां बना कर ले जाएगा खुश रहा करो , और ऐसे ही झल्ली सी बनी रहो ।
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