कितने क्रूर होगे वो लोग
जो चिढ़ते हैं प्रेम से
कितना लिजलिजा होगा वो धर्म
प्रेम वर्जित है जिसकी प्रार्थनाओं में
कितनी मनहूस होती होंगी वो हवाएं
जो प्रेम को छू ही नहीं पातीं-
6 FEB 2020 AT 12:35
1 AUG 2020 AT 15:07
तुमको भी भूलना है, तुम्हारे शहर को भी,
दोनों मिलकर मेरे ज़ख्मों को कुरेदते हैं।-
7 FEB 2020 AT 23:16
6 FEB 2020 AT 14:29
मैं काम के सिलसिले में,
कभी कभी उसके शहर जाता हूँ,
तो गुज़रता हूँ उस गली से.........
वो नीम तरीक सी गली.........
और उसी के नुक्कड़ पे,
ऊंघता सा वो पुराना खम्बा,
उसी के नीचे तमाम शब, इंतज़ार कर के,
मैं छोड़ आया था, शहर उसका........
बहुत ही खस्ता सी,
रौशनी की छड़ी को टेके,
वो खम्बा अब भी वही खड़ा है........
फितूर है ये........मगर.........
मैं खम्बे के पास जा कर
नज़र बचा के मोहल्ले वालों की........
पूछ लेता हूँ, आज भी ये ........
वह मेरे जाने के बाद भी आई तो नहीं थी ?????????
वो आई थी क्या ???????-