"लड़को" के चेहरों पर उम्र से पहले
गंभीरता दिखना,
बयां करती है उसके जीवन को,
कि उसे उम्र से पहले ही खींचने पड़ रहे हैं
जीवनरूपी गाड़ी के जिम्मेदारियों को,
और "लड़कियों" के चेहरे पर उम्र से
पहले पड़ी झुरियां,
बयां करती है उसके लड़की जीवन में
पैदा लेने कि "भयानक त्रासदी को"..!!!!
:--स्तुति-
ये दिल कुरेद कुरेद कर ज़ख्म दिए हैं सनम ने
पर अब उन्हें इस अच्छे काम के लिए धन्यवाद है
दुःखा तो था पर अब अपनी सही जगह पर है
जैसे बढ़ई के हाथों 'लकड़ी' कुर्सी बन आबाद है।-
क्या हो गया अगर
उम्र हो गयी पचास के पार.......
सोचती हूँ अक्सर कुछ भी चुनने से पहले
ताल गहरे रंग़ों के कपड़े को चुनने में कतराती हूं
क्यों हल्के रंगों की ओर यंत्रवत हाथ बढ़ाती हूँ
क्या बोलेंगे लोग ये सोच कर डर जाती हूं
बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम के जुमले से सिहर जाती हूँ
होता कोई उत्सव तो गंभीरता की चादर ओढ बैठ जाती हूँँ
डांस फ्लोर पे हक तो हैं सिर्फ यंगस्टर का
अपने कदमोंं में बेडियां बाँध किनारे बैठ जाती हूँ
दोस्तों के साथ कैसे हैंग आउट करने जा सकती हूँ
मौज मस्ती उम्र नही अब मन मसोस रह जाती हूँ
हूँ, मैं अपनी गृहस्थी की धुरी मन को मार समझाती हैं
चांदी के बालों की चमक डाई करने से हिचकिचाती हूँ
केश श्रृंगार ,परांदा,गजरा,फ़ूलों से कतराती हूँ
कहते हैं बच्चें, हो गई उम्र अब क्यों तुम इसको छिपाती हो
थियेटर जाकर मूवी देखने में संकोच कर जाती हूँँ
मैटिनी शो के आकर्षण को दमन कर जाती हूँ
पोते पोती संभालना हैं जरूरी , वहीं कर्तव्य निभाती हूँं
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जब काम के अतिरिक्त बोझ से थक कर चूर हो जाते हैं तब छिछोरापन सो जाता है और गंभीरता जाग उठती है
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शामिल हुए वो विद्वानों की टोली में
ना मुस्कुराने की कसम खाकर
हम तो है मूरख गंवार भईया
हंँस पड़े यूँ ही खिलखिलाकर.....
गंभीरता की ओढ़ी जब चुनरी
लगी घुटने दिल ही दिल बावरी
उतार फेका बनावटी मुखौटा
मैंने तुरंत ही तिलमिलाकर.....
ना रोको सहज सरल मुस्कान
चढ़ता इससे जीवन परवान
है गाड़ी का इंधन यह
रखता है दुनिया सजाकर .....
Geeta Raaz-
थोड़ी नादानियां ठीक है, हर जगह गंभीरता ठीक नहीं।
जो चाहोगे मिलेगा जीवन में, ज्यादा अधीरता ठीक नहीं।।-
"लोग हमारे बारे में क्या कहते हैं " ज़्यादातर लोग इन्हीं सवालों में उलझकर बीमार रहते हैं।
अगर जीवन मौज काटते हुए जीने की ख्वाहिश हो तो 'बी थेथर '।😉-
उम्र का नाम लेकर क्यों ख़ुद को बड़ा बताते हैं,
हमने जब आपको देखा ही नहीं कभी गंभीर होते।-
दाढ़ी के चंद बालों के रंगों ने बदला क्या अपना रूप...
अकस्मात ही...विचारों की चंचलता ने भी...
अपना लिया सादगी,समझदारी व गंभीरता का स्वरूप...-