बेवफ़ा हैं सभी बावफ़ा कौन है?
ये है दुनिया स्वतंत्र आपका कौन है?
ढूंढते हो किसे इस भरी बज़्म में?
भीड़ में जानशीं लापता कौन है.?
सिद्धार्थ मिश्र
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सुनता कौन है?
जिसे देखो वो,
यहां पर मौन है!
मौन होना भी,
असल में पाप है!
मूक पशुओं के,
सदृश ही श्राप है!
अर्थ जीवन का,
तुम्हें जो याद हो!
पाप का प्रतिकार,
हो संवाद हो..!
सिद्धार्थ मिश्र-
वो लोग कौन हैं?,
सफर में हमसफर छोड़ आते हैं,
दिल की बातें कर दिल तोड़ आते हैं,
खुदा कह के खुदा का दर छोड़ आते हैं,
मान कर महबूब ,हीर को छोड़ आते हैं,
हम तो सच्चे हैं कह के वादे तोड़ आते हैं,
तलाश खत्म हुई तुम पर मेरी नया फिर घर बसाते हैं,
इश्क़ है कह के दिलों से खेल आते हैं,
उम्र भर साथ कह के अंधेरे में छोड़ आते हैं,
जीत लेते हैं जिस्म और रूह को हार आते हैं,
वो लोग कौन हैं?..-
नादान नहीं हूं मैं सब कुछ जान रहा हुं
कौन है कितना पानी में अब पहचान रहा हुं-
पहचान में नहीं आता
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पहचान में नहीं आता कौन है और कौन नहीं
यहां सब बस अपने अपने मतलब के है
पहचान में नही आता
कौन आगे है और कौन पीछे छुपा है
देखूं तो ज़रा मैं भी
क्यों कोई पहचान में नहीं आता
क्या सब ने चेहरे पर नकाप पहन लिया
मेरी तरह कभी खुशी का तो कभी ग़म का
आखिर क्यों चेहरा ढूंढ़ते हैं हम
क्या पहचान में नही आता वास्तविक रूप
आखिर चल क्या रहा है और क्यों
हम इतने कन्फ्यूजन है
पहचान ने में खुद का ओर दूसरों को
खुद का तो फिर भी शीशे में देख लेंगे पर
दूसरों का कैसे पहचानेगें
क्योंकि चेहरा तो कुछ और बोलता है
पर वास्तविक रूप कुछ ओर ही कहता है
जो शायद पहचान में नहीं आता कभी कभी
हमें नज़रों से क्योंकि नज़रों में धूल झोंकना
आम बात हो गई है आज के दौर में
कितने अच्छे है और कितने बुरे हैं
हम सब ये भी पहचान में नहीं आता-
शख़्स सब के साथ जो है, कौन है
तन्हाई के आईने में जो है, कौन है
साथ निभाने के वादे थे हज़ारों
फिर छोड़ कर जा रहा है, कौन है
पीछे पीछे आया करता था
पीछा छुड़ा रहा है, कौन है
लोग कहते हैं वो खामोश है बहुत
अन्दर जो चीख़ रहा है, कौन है
यूँ तो भूल जाता हूँ सब कुछ ही अक्सर
जो निकलता नहीं ज़हन से कभी, कौन है
पत्थर था, मोम हुआ फिर पत्थर हो गया
ये मुझमें जो इतना बदल रहा है, कौन है-
जो मेरी पल - पल की खबरें
तुझे दे रहा है
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-- -- काव्यांजलि -- --
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मेरे मन की गहराई के
उस छोर पर ये कौन है
मैं तो हर-फै मौन हूं
ये जो भीतर बोल रहा है
कौन है?
मैं तो स्थिर हूं तब से
एक इंच भी हिला नहीं
फिर ये हर छण में
भीतर डोल रहा है
कौन है?
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इंतजार है किसी का, याद नही वो कौन है
सामने से गुजरा हर शख्श अपना सा लगा ।-
खुदा तो वो है जो किसी को दिखाई नहीं देता है
लेकिन जब कुछ न दिखे तो वही दिखाई देता है-