आजकल कुल्हड़ सा हो गया हूँ मैं
जो भी आता है, चाय पीता है और तोड़ जाता है...😢-
कुल्हड़ की खुशबू में
गर्म चाय अच्छी लगती है
चाय खत्म होने पे
कुल्हड़ को ज़मीन पे
तोड़ना भी अच्छा लगता है
ये दोनों शख़्स एक ही है
अक्सर मोहब्बत में भी
कुछ ऐसा ही होता है।-
देखों कैसे जला कर,
कलेजा वो अपना,
चाय को बाहों में भरता हैं,
भला आज़कल कुल्हड़ वाला इश्क़,
कोई यहाँ किसी से करता हैं!!-
वक्त के साथ जमाना भी बदला,
कुल्हड़ की जगह काँच ने ले ली,
मेरी वो चार रुपये वाली चाय,
मैने आज चौदह रुपये में ले ली।-
आ मिट्टी के कुल्हड़ में चाय लेकर
हम अपने रिश्ते पक्के करतें है ।
आ चाय की चुस्कियों के साथ
अपना प्यार गाढ़ा करतें है ।
उठती हुई चाय की भांप के संग
अपनी मोहब्बत को अमर करतें हैं ।-
कुल्हड़ संग गर्म चाय को, होठों से लगाया तो ऐसा लगा।
जैसे ! बारिश के मौसम में, तेरे होठों ने मेरे होठों को छुआ।।-
मैने तेरे शहर के हर नुक्कड़ की चाय पी कर देख ली
तेरे कुल्हड़ से पी हुई चाय का वो स्वाद कहीं नहीं मिला।-
एक तो उनकी आँखें नशीली..
दूसरा हाथ में चाय का कुल्हड़..!
दो-दो नशे एक बार में ही..
होश खोने के सिवाय अब बचा ही क्या...!!!-
यार कोई बात तो हैं उस चाय के कुल्हड़ में ..
खुद के दर्द को सहन करता है,
दूसरों के चन्द खुशियों के लिए..!!!-