• रात चाँद और तन्हाई
मैं आकाश में सजे
उस खुबसूरत गोले को देख रहीं हूं,
यदि मैं एक कवयित्री होती
तो अब तक इस मनोरम दृश्य के लिए
तीन-चार क़सीदे अवश्य ही पढ़ चुकी होती।
//अनुशीर्षक में पढ़ें-
• रोशनदान वाली वो धूप
इन बंद दीवारों में न जाने
रोशनदान की वो धूप
कहां खो गई थी,
कि रुककर कभी
सोचने की फुर्सत ही नहीं मिली।
// अनुशीर्षक में पढ़ें-
जायका
मुझे हमेशा से अपना काम स्वयं करना पसंद था, परंतु उम्र के इस पड़ाव पर न चाहते हुए भी काम की पकड़ कमजोर हो रही है| वैसे तो पूरी कोशिश रहती है की छोटे - मोटे काम तो अपने आप कर लूँ | जैसे अपनी और इनकी कम शक्कर की मसालेदार चाय बनाना, शनिवार को धनिया- टमाटर की मेरी स्पेशल चटनी, "अनु स्पेशल", और रंग-बिरंगे बटुए , हाँ अब वो पहले जैसी बात नहीं रही , पर शौक पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है|
// पूरी कहानी अनुशीर्षक में //
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//पुराने घर की छत//
आज मन कुछ उलझा सा था|
दिन-भर की उधेड़बुन में स्वयं से मिलने की तो फुरसत ही नहीं रहती| ...
/अनुशीर्षक/
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कहानी- सांझ
"कि अब न रही वो बातें,
बस बचीं हुई हैं कुछ मुट्ठी भर यादें...."
"वाह , मजा आ गया!" तालियों की गड़गड़ाहट से पार्क का वो कोना बोल उठा|
(अनुशीर्षक में पढ़ें)
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