हक़ीक़त कहो या फ़साना कहो तुम
कभी तो मुझे भी दीवाना कहो तुम
तुम्हारे ख़यालों से बाहर न निकला
इसी टूटे दिल को घराना कहो तुम
मैं घुट घुट के जीता रहा हूँ अकेला
मोहब्बत का कोई तराना कहो तुम
जो तस्वीर दिल में बनी है तुम्हारी
अक़ीदत का उसको पैमाना कहो तुम
मशिय्यत है मुझको मिलो तुम ही आख़िर
मुझे चाहे फिर भी पुराना कहो तुम
मैं 'आरिफ़' हुआ हूँ पढ़ी जब मोहब्बत
अकेला कहो या ज़माना कहो तुम-
मोहब्बत देख ली पढ़कर अक़ीदत के रिसालों में
कोई भी शख़्स 'माँ' जैसा दोबारा मिल नहीं पाया-
दुखी है वो अब मुस्कुराए भी कैसे
ये आँसू किसी को दिखाए भी कैसे
मुक़द्दस नहीं है मोहब्बत किसी को
वो सपने सुहाने सजाए भी कैसे
गुज़ारिश करे किस के पीछे पड़े
ख़ुदा को वो अर्ज़ी लगाए भी कैसे
ये इमरोज़ आकर बना है दीवाना
गुज़ारे पलों को भुलाए भी कैसे
मुकम्मल कहानी हुई ही कहाँ थी
अधूरी कहानी सुनाए भी कैसे
हसीनों की आदत से पुरनूर होकर
हसीनो को दिल में बिठाए भी कैसे
जो 'आरिफ़' का होकर भी उसका नहीं है
उसे पास अब वो बुलाए भी कैसे-
वो ज़ुल्फ़ों का आँचल मोहब्बत से पहले
किया मुझको घायल मोहब्बत से पहले
मेरे दिल में कुछ-कुछ लगातार होता
बजी उसकी पायल मोहब्बत से पहले
वो क़ातिल अदाएँ निगाहें नशीली
हुआ हूँ मैं पागल मोहब्बत से पहले
वो आँखों का काजल बनाए दीवाना
दिखे वो मुसलसल मोहब्बत से पहले
जो 'आरिफ़' के दिल पर है ढाए क़यामत
ये ज़ुल्फ़ों का बादल मोहब्बत से पहले-
करेंगे सभी अब इबादत, रमज़ान आया है
बढ़ाने दिलों में मोहब्बत, रमज़ान आया है
तसव्वुर करेंगे मिलेगा सब इस महीने अब
हो क़ुरआ'न की भी तिलावत, रमज़ान आया है
मशक़्क़त चली जाएगी ख़ुशियाँ लौट आएँगी
नमाज़ों से होगी रियाज़त, रमज़ान आया है
गुनाहों को सब के ख़ुदा भी आख़िर भुला देगा
हाँ होगी सभी पर इनायत, रमज़ान आया है
जो 'आरिफ़' करे तू ख़ुदा की कुछ बंदगी दिल से
मिलेगी तुझे भी सख़ावत, रमज़ान आया है-
चले आओ प्यार दूँगा रोज़ तुमको
गले का इक हार दूँगा रोज़ तुमको
ख़ुशी की कोई वजह मत ढूँढना तुम
सभी ख़ुशियाँ वार दूँगा रोज़ तुमको
तुम्हारा दिल रोज़ मुझको याद कर ले
दिलों का वो तार दूँगा रोज़ तुमको
मोहब्बत तुम आज मुझसे करके देखो
मेरे दिल का सार दूँगा रोज़ तुमको
कहीं 'आरिफ़' फिर न तुमको मिलने वाला
ख़ुशी दिल के पार दूँगा रोज़ तुमको-
अभी मोहब्बत बना रहा हूँ
तभी निगाहें चुरा रहा हूँ
तबाह कुछ भी हुआ नहीं है
गुनाह अपने छुपा रहा हूँ
मुझे तो मेरी अना ने मारा
नज़र में ख़ुद को गिरा रहा हूँ
ख़ुशी के आँसू बता के इनको
वफ़ा का बदला चुका रहा हूँ
जफ़ा को ख़ुद में मिला के 'आरिफ़'
सफ़ीर ख़ुद को बता रहा हूँ-
ज़िन्दगी में कुछ दुखों का ग़म न करना
बस किसी भी बे-वफ़ा को हम न करना
चल सको तो तुम भी उसके साथ चलना
पर मोहब्बत तुम दिलों में कम न करना
दिल से जिसको चाहते हो बोल देना
रूठ कर फिर आँख उसकी नम न करना
जब तुम्हारे पास कोई ख़ुश नहीं हो
भूल जाना फिर उसे हमदम न करना
ज़ख्म ख़ुद के तुम छुपाना रोज़ 'आरिफ़'
रहना ख़ुश तुम वक़्त को मरहम न करना-
क़लम हाथ में लेकर तुम क्या सोचते हो 'आरिफ़'
करोड़ों ज़ख़्म हैं दुनिया में जिसे चाहो लिख दो-
हसीन वो है, जवान मैं हूँ
वफ़ा का उसकी निशान मैं हूँ
कभी इबादत, कभी मोहब्बत
नमाज़ वो है, अज़ान मैं हूँ
नज़र में उसकी भरी मोहब्बत
नज़र का उसकी जहान मैं हूँ
निगाह क़ातिल, शबाब क़ातिल
तभी से उसका ग़ुमान मैं हूँ
सुना है 'आरिफ़' फ़िदा है उसपर
ख़ुशी है गर वो अमान मैं हूँ-