प्रतीक्षा...
तुम्हारी प्रतीक्षा का वो मौन संवाद
हज़ार शब्दों से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है
तुम्हारे न होने का वो एहसास
सब के होने से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है
अपनी ही अपूर्णता में इक तुम्हें ढूंढना
ख़ुद को पाने से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है
तुम्हारी प्रतीक्षा...
तुम्हारे न लौटने का वो विश्वास
ख़ुद के भटकने से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है
ख़ुद का वो मन के वन में मृग सा भटकना
ठहरने से ज़्यादा मृगतृष्णा का होना महत्वपूर्ण है
तुम्हारी प्रतीक्षा...
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कुछ चीजें बन्द आंखों से बहुत सुंदर दिखती हैं
जैसे सपनों में हर बार तुम्हें यूँ देखना...-
तुम नहीं हो तो भी...तुम अक्सर होते हो
तुम होते हो जब भी...हम मुस्कुरा देते हैं यूँ ही
तुम होते हो जब खुद ही... अश्क़ ढलक जाते हैं
तुम होते हो जब पलकें... नींद से ओझल होती हैं
तुम तब भी होते हो जब ... बीच आधी रात अचानक ही
नींद खुल जाती है... तुम नहीं हो तो भी
तुम अक्सर होते हो... जब कभी कोरे कागज
पर निगाह जाती है और... तुम्हें न बता पाने वाली
हर अधूरी बात याद आती है... तुम अक्सर होते हो…
तुम नहीं हो तो भी... तुम अक्सर होते हो...-
रोज जब खुद को अधूरा सा पाती हूं आईने के सामने
तो कोने में छिप कर मेरी तरफ़ बेज़ार सा देखता वो
काजल मुझे पूरा करने का आस सजाए बैठा होता है
मेरे बीमार अधूरे से चेहरे पर जैसे वो काजल की रेखा
सब कुछ पूरा कर जाती है बस वैसे ही तुम्हें भी मैं
अपनी ज़िंदगी में चाहती हूं, जिसके चेहरे की मुस्कुराती
आंखें जीवन में सब अधूरे हिस्से को पूरा कर जाती हैं।।-
कितना ख़ामोश सा है
ये इंतज़ार...
जहाँ आज भी हम
उस से कविताओं में
मिला करते हैं...
कौन कहता है कि
मर के लोग दूर हुआ करते हैं...
#इक_तुम्हारा_होना-
तुम्हारे बिना अधूरे तो नहीं हैं
बस पूरे नहीं हो पाते...
हर रोज़ ख़्वाब बुनते तो हैं
बस हक़ीकत नहीं हो पाते...
तुम अब सर्दी की धूप से हो गए हो
दिखते तो हो बस गरमाहट नहीं दे पाते
तुम्हारे बिना...
तुम्हारे बिना दिल दुःखता तो नहीं
बस अब खिलखिला के हँस नहीं पाते...
हर रोज़ इंतज़ार तो है
बस मुक़म्मल नहीं हो पाते...
तुम अब सागर के पानी से हो गए हो
होते तो हो बस तृष्णगी नहीं मिटा पाते
तुम्हारे बिना...
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इक शोर सा है तेरी मेरी
ख़ामोशी के दरम्यान...
जज्बातों को ज़बरन यूँ बांधने में...
इक जोर सा है
तेरी मेरी दूरी के दरम्यान...
इक शोर सा...
इक ओर ख़ुद को इक ओर
तुझको पाने की चाहत में
हर रोज़ ख़ुद को समझाने में...
इक नया दौर सा है
तेरे मेरे दास्ताँ के दरम्यान...
इक शोर सा...
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तुम न थे तो भी हम थे
जैसे भी थे; हम थे...
इक दिन तुम आ गए जीवन में औ'
अब हम, हम नहीं थे
तुम्हारे होने में खुद को ढूंढते हम थे
एहसासों में, अभिव्यक्ति में अपना होना खोजते हम थे
हर पल में तुमको जीते हुए हम थे...औ'
इक दिन तुम अकेला छोड़ गए
फिर भी तो हम थे; अब तुम्हारी यादों
अधूरे वादों में हम थे... इस बात से अनजान
कि हमारी पूर्णता में बस हम ही तो थे
अपने अधूरेपन को तुम में यूँ खोजना सही तो न था;
क्योंकि जब तुम न थे, तब भी तो हम थे... सही थे, गलत थे
बस हम थे...-
ऐसा नहीं है कि किसी के जाने
से सब बदल जाता है
पर हर जाने वाला किरदार
आप की कहानी का इक हिस्सा
तो लिए ही जाता है...
वो हिस्सा जिसके बनने में सब से
ज़्यादा वो क़िरदार अहम होता है
संग अपने उन हर लम्हों को भी
समेट ले जाता है...
ऐसा नहीं है कि... सब बदल जाता है
जाने वाले को कैसे जाने देना है
ये तय करना भी तो कहानी का हिस्सा होगा
यादों को समेटना या बिखेर देना
ये हमारा ही तो फ़ैसला होगा
नफ़रत और प्यार के दरम्यां भी तो
चुनना हमें ही होगा
ऐसा नहीं कि किसी के जाने से
सब बदल जाता है...
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तुमको भूलने में वक़्त नहीं ज़िंदगी लगेगी
दोस्त! ये सिलसिला टूटने में इक उम्र लगेगी...
इक तुम्हारा होना कितना कुछ होता था
इक तुम्हारा न होना भी बहुत कुछ होता है...-