सवाल करती है मुझसे अब वो आँखें भी,
जो मेरे सवालों का जवाब हुआ करती थी।।-
अब और इंतज़ार हमसे नहीं होता,
आंसू हो गए खत्म
रोते हैं जब आंखें में पानी नहीं होता,
ना आता है चैन कहीं
एक पल भी हमारा दिल नहीं सोता,
काश ये मोहब्बत ना होती
आज खुशियों में जीता ऐसे ना रोता।
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ये जो इश्क है ना,दिल के किसी कोने में
नहीं सिर्फ आँखों में बस जायें.....,
धड़कन जब धड़कें जोरों से,काश!
वहीं ये इश्क आँखों से मुकम्मल हो जायें!!-
हज़ारों ख़्वाब सी ये अफ़ीमी आँखे..
उम्र की इक राह सी रुक गई,
इन्हे देख कर..— % &-
छोड़ दो करना,मेरी इन आँखों की तारीफें
तुम जब मेरे इश्क़ की गहराई ना देख सके।।
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यूँ बखूबी उसे इश्क़ मयस्सर करना आता है,
कि आँखों से आँखों में उतर के,
उसे दिल मे घर करना आता है।-
चाँदनी रात में चाँद-सा चेहरा,
उस साँवली सूरत का है.!
जो अँधेरी शब में कहीं,
गुम-सा दिखाई देता है!!
वो झूमके उसकी जुल्फों की,
ओट में रूखसार को छूते है!
हो जाते है ये गुलाबी रूखसार
जब महबूब का नाम ये लब बोलते है!
उन चमकदार कजराली...
आँखों का जिक्र क्यों ना हो,
जो अँधेरी रात को चाँदनी शब
में बदलनें का हुनर रखती है!!
उसकी हँसी भी किसी का
दिल बैचेन कर सकती है..!
हाँ,वो साँवली सूरत-वाली भी,
हुस्न की मल्लिका हो सकती है!!
- वन्दना जाँगिड़
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मैं दिल से पढ़ता हूँ.......,
उसकी गहरी संजीदा आँखों को,
और वो मुझसे शिक़ायत करती है,
कि तुम्हें नज़्म समझ नहीं आती है।।-
बरसों बरसीं वो दो आँखें, तब जाकर ग़म की आग बुझी,
अब मरने दो उन शोलों को, क्यों और जलाने आए हो।-