जो तुम चांद लाने को कह दो,
मैं तुमको आईना लाकर दे दूं।-
ना पूछा उसने ना मैंने बताया
बेहाल सा मेरा हाल भी चला गया,
वो गये थे जो छोड़ के निशानी अपनी
धीरे-धीरे वो ख़्याल भी चला गया,
देखी इंतज़ार में सारी तारीखें
औऱ देखते ही देखते साल भी चला गया,
उम्र ने ज्यूं-ज्यूँ पैर फैलाये
ज़िन्दगी का सारा मलाल भी चला गया,
ज़िन्दगी की परीक्षा में कई उत्तर छुटे
अब औऱ मेरे जीने का सवाल भी चला गया..!-
ऋतुएं बीती कृतियाँ बीती
मैं उसी हाल में बैठा हूँ
लिये स्मृतियों की आकृतियां
पंख निकाल के बैठा हूँ,
मन विभोर जाऊँ किस औऱ
थामें इस साल की आख़िरी ड़ोर
मैं आख़िरी डाल पे बैठा हूँ,
तेरी अटारी पे ऐ मुहब्बत
इक बहम पाल के बैठा हूँ,
बड़े सयाने यह मोहः के दाने
मैं ख़ुद ही जाल पे बैठा हूँ,
किसी के पास तो हो निशानी
चलती रहे यह यादों की कहानी
तुम्हें "प्रिये" हो नया साल मुबारक़
मैं पुराना संभाल के बैठा हूँ..!-
"तुम आओ ना मेरी फुलवारी में
इक फ़ूल ख़ुशी का लगा दो ना,
हैरान कर दो ना मुझको
तोहफ़े में अपनी ख़ुश्बू छुपा दो ना,
लौटा दो ना कटते इस पेड़ की
सारी वो बारह टहनियाँ
तेरे बिरहा में झड़ी सारी वो उदास पत्तियां,
कम हो गये उम्र के जंगल
यह लौ इंतजार की बुझा दो ना,
तुम आओ ना मेरी फुलवारी में...
"यह साल फिऱ से मेरी ज़िन्दगी में उगा दो ना"
-
ख़ुदा...,
अभी-अभी तो जिंदगी
पर्दे पे आयी थी,
तूने पहले क़िरदार को
दिल का एक हिस्सा बना दिया,
फिऱ क्यूँ उसकी कहानी को
एक किस्सा बना दिया
इतनी भी क्या जल्दी थी ख़ुदा..?
सुना था.., चूक सिर्फ़ इंसानों से होती है..!-
रिक्त पंक्तियाँ
हुए शब्द निहत्थे,
कल्पनाओं की...
मधुमखियाँ उड़ गई
वीरान से सुन्न रह गए छत्ते,
"जिसे पंख थे...
वो उड़ गया पंछी"
शज़र ढह गया
अब हम जायें कहाँ पत्ते...!-
मैं सावन का
आख़िरी बादल,
ख़ुद को समेटना
बिसर गया हूँ,
जबसे मौसम से
बिछुड़ गया हूँ,
देख..,
मैं कितना
बिख़र गया हूँ..!-
तेरे ख़ुशामदीद कहने से अलविदा कहने तक
सिर्फ तुझे चाहूँगा, तुझसे कुछ नहीं चाहूँगा-
चले आओ चले आओ 'राहत' में हूँ
जो चला गया है उसकी चाहत में हूँ
लोग मुझे सुनकर तालियाँ बजाते थे
लगता है मैं आज भी मोहब्बत में हूँ
अग़्यार हो जाऊँगा दुनिया के लिए मैं
अल्फाज़ रो रहे हैं क्या शहादत में हूँ?
जिसने सुना है वो सुनता चला गया
मैं आज भी कितनों की आदत में हूँ
तू सुन लेता तो अच्छा होता 'आरिफ़'
जाने कितने शायरों की विरासत में हूँ-