पकड़ा है उसने मुलायम हाथों से मुलायम फूल
एक तस्वीर में
देखकर वो तस्वीर सोचता है " संधू "
क्यों नहीं ये परमप्रिय तकदीर में |-
जहाँ रख ना पाती दुनिया सामान अपना बड़ी बड़ी अलमारीओं में
मैं समेट लिया करता हूँ अपनी ही दुनिआ एक छोटे से ट्रन्क में
जी हाँ मैं नवोदय का छात्र हूँ-
लटकता है तो लटक जाने दो
कोई जूठे इल्जाम से
लड़का है कोई बात नहीं
लड़की होती तो लगवाते नारे अवाम से
अवाम - people
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वो तस्वीर में धुंधली सी है
फूल के पीछे छुपती नज़र आ रही है
और पीछे दिख रहे हरे पत्ते तो
" संधू " के ख्यालों को उकसा रही है-
हम सब के हाल ही कुछ ऐसे है
कि अपनी भाषा की कर बंद नब्ज बैठे है
गलती " संधू " जैसे लाखों भारतीयों की बस यह है
कि हम " मातृ " को " मात्र " समझ बैठे है
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साँसे रुक सी गयी
जीवन थम सा गया
वो रंगीन पल अधरंग सा लगा
दिल का दरिया जम सा गया
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हाथ में पकड़े फूल जैसा
एक कान में लगाया हुआ है
धुंधले से नजारे में ऐसा प्रतीत हो रहा
कि चाँद को झुमका पहनाया हुआ है-
पुराने ज़ख्म तो होते ही दर्दनाक हैं
मगर वो भी कम नहीं जो बाद में आया करते हैं
नए सिर्फ दर्द ही नहीं लाते हैं साथ में मेरे दोस्त
वो तो पुराने ज़ख्म देने वालों की भी याद साथ लाया करते हैं
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जिन रास्तों ने ले ली नाजाने कितनी ही जानें
हम फिर उन्हीं रास्तों पर मरने चले हैं
पहले ही मरे पड़े थे पत्थर दिल से इश्क़ करके
अब फिर से पत्थर दिल से मोहब्बत करने चले हैं
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दुआ बेअसर सी हो रही हमारी
उसे अपना बनाने की
शायद खु़दा कर रहा तैयारी
उसे किसी और का बनाने की
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