छत पर रखी कुर्सी पर शून्य सी हो
बैठी चुपचाप व्योम को निहार रही थी।
सूर्य भी रोज की भांति ही
अपने गतंव्य की ओर चले जा रहा था।
सांझ के ढ़लते रवि की सुनहरी किरणें
मेरे चेहरे पर ऐसे पड़ रही थी
मानो मेरे माथे को चूम रही हो।
पेड़ की टहनियां झूम झूमकर
मानो मुझे तुम्हारे आने का संदेश दे रही हो।
बहती हवाओं के छूते ही एक
स्पंदन मेरे भीतर दौड़ चला
मानो तुमने मुझे आकर
अपने आगोश में ले लिया हो।
हां, मैं तन्हा कभी रही ही नही
क्योंकि
तुम कभी धूप,कभी हवा बन
मुझे स्पर्श कर यही महसूस कराते
कि तुम हो,
हमेशा मेरे पास ही हो।-
दीये की बाती को जलाने के लिये मुझे जलाओ। अंधेरे को दूर कर रोशनी के लिये मुझे जलाओ। लेकिन शरीर को धुं-धुं कर खत्म करती सिगरेट के धुंये के शौक के लिये मुझे जलाने की कोशिश ना करो।
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@authorpayalsawaria #writershaani
शहर बददुआयें दे रहा है
और
वही सारा गाँव शुक्रगुजार है
उस वायरस का
कि उसके अपनों को
वो फिर से ले आया।-
"विरह "के प्रतीक सा प्रतीत होता अंबर से जुदा होता टूटता तारा......... "प्रेम "के प्रतीक सा प्रतीत होता बरखा बूंदों का दूब घास के शिखाग्र पर ठहरना.......
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बजती घंटियों के साथ
हर के द्वार में होता शंखनाद
जीवन सार का मिलता प्रसाद
आरती के शब्दों में जले मनदीप
अविरल जलधारा में बहाये दीप
तट किनारे जा बैठा जो ह्रदय विराट
सुकून के पल देता उसको गंगा घाट।-
नीदों में स्वप्न सजाती विभावरी की कुछ खट्ठी कुछ मीठी यादों के इत्र की भीनी भीनी खुशबू से आज भी मन का हर कोना महक जाता है और उजले जलकण के मेघ लोचन पर छा ही जाते है मंद मुस्कान अधरों पे सजाये अश्क कपोल पर लुढ़क ही जाते है।
©payalsawaria_-
लगातार घमासान
पहली दूसरी तीसरी चौथी लहर
के बाणों से क्षत विक्षत हो
कोरोना के खौफ में सहमा था
विश्व का हर एक शहर
नित नयी व्याधियों ने
बरपाया कैसा ये कहर
हो जाओ तैयार दोस्तों
अब मंकी पोक्स की
पड़ रही है नजर।
✍️शानी
©️authorpayalsawaria
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सादगी से सत्य को छोड़
सजे धजे झूठ के
श्रृंगार को जो करे स्वीकार,
न्याय की चौखट अंत में
उसको ही करे अस्वीकार। #writershaani
©️authorpayalsawaria-