मिले वक़्त तो चले आना कभी हमारी बस्ती में।
मैंने एक अरसे से चांद को करीब से नहीं देखा।-
ओय!! मेरी लफ्ज़ सुनोगे क्या?
वो चांद सा मुखड़ा
मुस्कुराता सा वो चेहरा तेरा
जिसे देख पलके झपकना भी भूल जाए
नैना निहारना चाह रही,
कदमे मिलाना चाह रही,
ओंठ बयान करना चाह रही,
कुछ अनकही बातें बताना चाह रही,
मेरी लफ्ज़ सुनोगे क्या?-
बात जब हक की आती है तो हम चूरन चटनी बाले हो जाते है
सुना है आज कल कोरोना के डर से आई एम ए बाले भी 2 चम्मच च्यवनप्राश खाते है-
लोगो को बरसात बंद होने के बाद छतरी बोझ लगने लगती है।
हम तो फिर भी इंसान है।-
हमारे दिल में ये जो धड़कन है वो बस तेरे नाम की है
तेरे चेहरे की चमक उस सुनहरे चांद सी है
तू दूर गया एक पल भी तो ये ज़िन्दगी किस काम की है-
आता गर हमे भी इजहार ए मोहब्बत का सलीका
तो आज उसका नाम "मिसेज शर्मा" जरूर होता।-
ये जो धूमिल सी एक तस्वीर तुम अपने सीने से आज भी लगाए बैठे हो।
उसने तो कब का बदल लिया है अपना रास्ता
और तुम उसके आने की राह में आज भी अपनी पलकें बिछाए बैठे हो-
"वो दौर बचपन का"
ना जाने हम कब बड़े हो गए
छोड़ कर गांव की गलिया शहरों में खो गए।
मिल जाती थी खुसी वो कागज़ की कश्ती चलने में
खरीद लेते थे भर पेट मिठाई बस चार आने में।
उस वक़्त लोग भी बड़े सीधे और सच्चे होते थे
क्युकी तब हम अपने चौबारे पर ही सोते थे।
निकल जाते थे जब यारों के संग टोली में
बहुत मज़ा आता था उस आंख मिचौली में।
वो गांव पगडंडियों का रास्ता भी बड़ा सुहाना था
न पिज़्ज़ा न बर्गर वो सरसों के साग और चूले की रोटी का जमाना था।
आती थी दीवाली तो खुशी से फुलझड़ी और दिये जलाया करते थे
होली के रंगों में डूब कर सारे गिले शिकवे भूल जाय करते थे।
उन रातों में नीद भी बड़े सुकून से आती थी
जब दादी नानी परियों के किस्से कहानी सुनाती थी।
अब तो बस आगे निकलने की होड़ में दिन रात भाग रहे है
रातों को सोते तो है मगर लगता है कि सदियों से जाग रहे है
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हैरान है ये सारा जहां मेरे देश की मिट्टी की उपज देख कर।
ये अनाज ही नहीं भगत सिंह जैसे वीर भी पैदा करती है।-
शर्त लगी थी एक शब्द में दुनिया भर की खुशी बयान करने की।
सब कितावों में ढूड़ते रहे और मैंने अपनी कलम से मां लिख दिया।-