थोड़ी सी ठोकर से तू यू जो चीखता हैं
एक शहीद के लहू का हर एक कतरा इंक़लाब कहता हैं
तुझे दिखती होगी जन्नत किसी के आँखों में
उसे तो अपना वतन ही जन्नत लगता हैं
लाल गुलाब देकर किसीको जो तू इज़हार ए इश्क़ करता हैं
उसकी खाकी पे लाल लहू मोहब्बत का प्रमाण हैं
तू चार दिवार के अंदर जो मख़मल में सुकून से सोया हैं
उसके लिए सरहद उसका घर और रेगिस्तान उसका बिस्तर हैं
किसी की दो पल की दूरी बर्दाश्त नहीं तुझे
दुरी का मतलब सरहद पर तैनात जवान की पत्नी से पूछा हैं
घर की महज रौशनी जाने पर तू जो चिल्ला उठा हैं
उस माँ के बारे में सोच जिसने अपना चिराग खोया हैं
जहाँ तुम हिन्दू-मुसलमान के फर्क में लड़ रहे हैं,
कुछ लोग हम दोनों के खातिर सरहद की बर्फ में मर रहे हैं.
ख्वाहिशे तेरी जो बेहिसाब, मरने से जो तू डरता हैं
एक शहीद है जो अंत सफ़र में बस कफ़न में तिरंगा मांगता हैं
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