किन हदो को तोड़ू मैं ,
चीख़ कर तुझे बताऊ ,
अब नही सहा जाता मुझसे इस इश्क़ को कैसे भुलाऊँ-
ताउम्र ढूंढती रही,
एक अंजाना सफ़र चलती रही,
मिली भी तो नज़रे तुमसे कुछ इस मुकाम पर...
तुम दरिया के उस किनारे और मैं इस किनारे चलती रही.....-
मर जाते है ज़िस्म, मगर मिटते नहीं जज़्बात......
ख़ामोश हो जाते है लिख़ने वाले, मगर चीख़ते है उन्के अल्फ़ाज़......-
तन्हा नही है अब ज़िन्दगी, तेरी यादों में अल्फ़ाज़ ज़िंदा है।..........
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मौत में, सुकून का इंतज़ाम दे दू।
आ इश्क़ में फिर तुझे, इन लबों का जाम दे दू।-
क्यूँ की गवारा नही-
तू दूर है,मगर पास हैं.........
इस शोर में भी, ख़ामोशी का एहसास हैं,
तू जहाँ भी है,
बस पीर-ए-हिज़ाब! हैं..........
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मेरे इश्क़ को इस बाघी क़लम का पैग़ाम.....
तेरें इश्क़ की स्याही में डूब कर मैंने चलना सीखा हैं,
चलते-चलते कदमों को लफ़्ज़ों में बदलना सीखा हैं।.....-
ये रात कुछ कहती है, ये सफर अन्ज़ाना है-
ज़िन्दगी के फ़साने में हर कोई मिल कर बिछड़ जाता है,
है अगर सच तो!
बस ख़ुद का साया ही साथ रह जाता है।-
ये सफर है-
तेरा इस कदर यू करीब आना,
क्यों मुझें आफताब की तरह फिर जला रहा है....
सदियों से जमी मेरें भीतर की बर्फ़ को पिघला रहा हैं.....-