जब ये दिल
उनके दिल से जा मिला
धड़कने के बजाय वो गुनगुनाने लगा..
इश्कधुनी से अनजान था कभी जो,
'सुरों का शहंशाह' वह कहा जाने लगा...-
गाते चले है मत पूछो क्या गुनगुनाते चले हैं
जिंदगी ने हमको समझा उसका शुक्रिया है
उसी की धुन में राग सजाते चले हैं
जिंदगी की सरगम पर गाते चले हैं
मत पूछो क्या गुनगुनाते चले हैं
लम्हा लम्हा गुजर रहा है
समय का पहिया है
अपनी ही धुन में चल रहा है
उसी की धुन के साथ
सुर ताल मिलाते चले हैं
जिन्दगी के सरगम पर गाते चले हैं
मत पूछो क्या गुनगुनाते चले हैं।-
बंद करो ये शोरगुल, काट खाने को आते हैं मुझे ये।
अचानक इस तमतमाई हुई आवाज़ को सुन कर चंचल का दिल मायूस हो गया। फिर भी उसने अपने मन को मजबूत कर कहा- पिताजी, आपको क्या तकलीफ हैं इन सबसे।
मुझे ये घुंघरू की आवाज़ बिल्कुल पसंद नहीं हैं। मुझे ये नाच गाना अच्छा नहीं लगता। छोड़ दो ये सब।
पिताजी सुर-ताल तो व्याप्त हैं कण-कण में, पानी के टिप-टिप में, कल-कल करती नदियों में, बच्चे की अठखेलियों में, सरस्वती माँ की वीणा में, सब जगह।
अब तू पिद्दी से लड़की मुझे समझाएगी, कि कहाँ क्या हैं? पंडित हूँ मैं। सारे ज्ञान कंठस्थ हैं मुझे। इतना कहते ही पंडित जी ने चंचल के पैरों से घुंघरू निकाल के घर के बाहर फेंक दिए।
चंचल ने भी खामोशी की चादर ओढ़ ली हैं......
-