इश्क़ की इक रंगीन सदा पर बरसे रंग
रंग हो मजनूँ और लैला पर बरसे रंग
कब तक चुनरी पर ही ज़ुल्म हों रंगों के
रंगरेज़ा ! तेरी भी क़बा पर बरसे रंग
खाब भरें तेरी आँखें मेरी आँखों में
एक घटा से एक घटा पर बरसे रंग
इक सतरंगी ख़ुशबू ओढ़ के निकले तू
इस बेरंग उदास हवा पर बरसे रंग
ऐ देवी तेरे रुख़सार पे रंग लगे
जोगी की अलमस्त जटा पर बरसे रंग
मेरे अनासिर ख़ाक न हों बस रंग बनें
और जंगल सहरा दरिया पर बरसे रंग
सूरज अपने पर झटके और सुब्ह उड़े
नींद नहाई इस दुनिया पर बरसे रंग-
Faqir ke zholey ki faqiri toh dekho,
Saikdo Amiron ki amiri zhuka di.
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दुनिया भर की खुशियाँ माँ पर
क़ुर्बान है,
सब से करती हुँ प्यार पर माँ
मेरी जान है।
माँ के ग़ुस्से में भी एक अलग
हि दुलार है,
माँ से ही तो ये सारा संसार है।
माँ खफा तो सब खफा है
खफा ये सारा जहान है ,
माँ के लिए तो उसका बच्चा
सदा ही नादान है ।
दुनिया में कहीं भी रहो बस
साथ माँ का प्यार है,
सुफि इस हसीं नेमत के लिए
खुदा की शुक्रगुज़ार है।
-सुफिया खान
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ख़्वाबिदा रूह और आफ़रीन जिस्म थी
खुदा कि तराशी आयतें नायाब-ए-किस्म थी
इश्क़ का कतरा रेगिस्तान में सरसब्ज़ मकाम कर दिया
वो नर्गिसी नज़र वाली जांविदा हुस्न में क़ैद तिलिस्म थी-
ऐ ख़ुदा मेरे सुकून से मेरा इज़्तिरार नोच दे
कुछ यूं कर मेरी जुस्तजू से ये तकब्बुर खरोंच दे-
ए खुदा, ज़रा और खुदाई दे
जिस्मों कि भीड़ है बरपा, मुझे रूह कि तन्हाई दे
इस शोर में भी तू सुनाई दे
महफ़िल हो या की हो कबर, मुझे तू दिखाई दे
तेरा मुरीद तुझे दुहाई दे
झूठी अना संभाली अब तक, अब सच्ची रुसवाई दे
मेरे मुर्शिद मुझे इलाही दे
वो फानी को लाफानी कर दे, ऐसी कोई सफाई दे
मुझे मुझसे हि रिहाई दे
खुद के दर्द से रोया बोहोत, मुझे पीर कोई पराई दे-
दूर उफ़क पार तक
हसरतें हज़ार तक
दर्द कि दरार तक
पलने से मज़ार तक
कुछ हुए बेज़ार तक
एक हो गया फ़रार तक
रूह तन्हा बेकरार तक
खयाल कि रफ़्तार तक
मौत की दरकार तक
अब ये जां निसार तक
बस आखरी इफ्तार तक
उसके एक इकरार तक
ये जां भी तुझ पे निसार तक-
I've left all the strings unto you
for me, I ain't a citizen but just a visitor-
सूफियाना है तो अंदर से साफ़ हो जा
खुदा से इश्क़ कर, खुद के ख़िलाफ़ हो जा
रूह को इतना पाक कर
कि फ़कीर का सुफ़ सफ़ेद लिहाफ़ हो जा-