3.30am,
December
full moon
Car stopped, I peeped out of the window, neelgiri tree trunks tied togather with transparent white cloth, a tiny lamp kept in the centre of trees, wind came gushing and my hair fell upon my face as I removed I screamed at the horrible sight...
I wake up with a jolt, car suddenly stopped...-
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He continued,"my name is Bhim singh. I am also heading to Bahadurgarh its my native village.
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Since then there are numerous stories of how he helped strangers to reach the village. None of the villagers have seen him really. All of them have heard about him......
Read till end for the twist-
पलाश....8
इसी बीच पास के माइनिंग industries ने csr के चलते उसके काम की फंडिंग शुरू कर दी है,
पलाश अब एक social entreprenuer बन गई है
ये सारी चीज़ें बरसों पहले लोग बनाते थे पर वक़्त के साथ भूल गए।
मैं पलाश के बारे में इतना सब कैसे जानती हूँ क्योंकि वो इस महीने की मेरी hidden gems of India ki cover story है।
मैं अर्पिता new age india monthly magzine ki editor in chief , ऐसे ही नायाब हीरों को ढूंढती रहती हूँ।
अगर आपके पास भी ऐसा कोई हीरा हो तो बताइयेगा ज़रूर।
समाप्त।-
पलाश.....6
पतझड़ में उसने कम से कम 10 पेड़ो के पत्ते इकट्ठे कर लिए,जब नवरात्रि में कन्या जिमाई तो उन्ही पत्तलों पर पलाश के पत्तों से बनी, न प्लास्टिक न डिस्पोजल,न एक पैसा लगा।
गांव के लोगो को बात कुछ कुछ समझ आ रही थी,अब कई औरतें पलाश के पेड़ उगाने लगी थी,फिर टूटे पत्ते चुनना ओर उनसे प्लेट्स ओर बाउल्स बनाना धीरे धीरे इन सबने इन पत्तलों का एक बड़ा स्टॉक क्रिएट कर लिया और अब तो आस पास सब जगह ye biodegradable plates and bowls सप्लाई करते हैं।
जिन घरों में पहले खाने को दो वक्त का खाना भी नही था वहाँ अब धीरे धीरे ही सही पर पैसा ठहरने लगा है।
पर पलाश कहाँ रुकने वाली थी...
क्रमशः....-
पलाश....5
उस दिन घर जाकर, फूट फूट कर रोई पलाश, "दादी देखो न सब मेरा कितना मज़ाक उड़ाते हैं,"
"रोते नहीं मेरी बच्ची,ये सब एक दिन तेरे गुण गाएंगे।" दादी ने उसके बल संवारते हुए कहा था।
आधे से ज़्यादा बीज तो फले नहीं,पर जो फले उनसे पानी लेने जाते वक्त धूप से बचने लगे लोग, और पलाश, वो बस यूं ही हर जगह बीज बिखेरती,जहाँ थोड़ी मदद मिलती वहाँ कुछ गड्ढे खोद बो भी देती कुछ भले लोग उसकी मदद भी कर देते पर ज़्यादातर वो अकेली ही करती।
खासकर handpump से थोड़ी दूरी पर उसने बहुत पेड़ लगाये। पर इन 3 सालों में उसने 1000 से ज़्यादा पलाश उगा दिए इन मगरों(पहाड़ों) में।इस बार जब सावन गया तो handpump में पानी था,पर पलाश के सपना सिर्फ पानी नही था।
क्रमशः...-
"पलाश"...3
जहाँ चूक होती लोग कहने से बाज़ नहीं आते लंगड़ी आलसी भी है। हाँ थोड़ा आलस तो था भी उसमे, पर दिमाग गज़ब का था।और चाहे जो हो जाये school रोज़ जाती थी।
एक दिन school से आई और पूरी शाम अपनी किताब ले कर बैठी रही फिर दादी से पूछने लगी घर के बाहर पलाश के ही पेड़ क्यों है,
दादी हँसते हुए बोली,अरे पगली आज क्यों पलाश।के पीछे पड़ गयी है,अच्छा सुन,जब मैं आई थी न ब्याह के इस घर में 13 बरस की थी,तब अम्मा ने पलाश के बीज भी दिए थे साथ में,
मैंने यहाँ आ कर बो दिये,पहले पलाश को बड़े बूढ़ों का आशीर्वाद कहते थे।"
क्रमशः...-
"पलाश"...2
पानी की कमी लगभग पूरे ही राजस्थान में है,गाँव में एक ही हैंडपम्प था उसमें भी पानी नहीं आता,सो पानी लेने गांव के बाहर के तालाब पर जाना पड़ता वहाँ भी गर्मियों में बहुत मुश्किल से पानी मिलता।
और पलाश के लिए वहाँ तक जाना अपने आप में एक मुसीबत थी,एक हाथ मे बैसाखी, फिर दो घड़े पानी लाते लाते उसे 2 घंटे हो जाते थे।
फिर सारे घर के काम,उसका दम निकल जाता था,और जहाँ चूक होती लोग कहने से बाज़ नहीं आते लंगड़ी आलसी भी है।
क्रमशः...-
पलाश...4
पूरी रात दादी और पोती पलाश की बातें करते रहे,जब आंख लगी तो सूरज ने थपकी दे कर उठा दिया।
अगले दिन जब पलाश पानी भरने गई, पूरे ऊबड़खाबड़ रास्ते में पलाश के ढेरों बीज बिखेरती गई।
और उसकी सहेलियों ने उसका बहुत मज़ाक उड़ाया।
"क्यों री पलाश तुझे पलाश की खेती करनी है क्या?"
"हाँ करनी है?तुझे क्या,"
"लंगड़ी तो लंगड़ी,ऊपर से नकचढ़ी,
पहले तो आलसी, हो गई है पगली"
" चुप रहो तुम सब ओर अगर डाल सको तो आते जाते थोड़ा थोड़ा पानी डाल देना कुछ पौधे उग आएंगे।"
क्रमशः...
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"पलाश"....1
अब अगर कोई होली के आस पास इन रास्तों से गुज़रे तो दोनों तरफ के पहाड़ देख कर लगता है,
सैंकड़ों हवन कुंड एक साथ जल उठे हैं,
शायद इसलिये इन पलाश के पेड़ों को flame of the forest कहते हैं।
पर ये पेड़ ऐसे ही नही उग आए हैं,कुछ बरस पहले तक ये पहाड़ियां वीरान पड़ी थी, इन्हें रंग दिया पलाश के जुनून ने।
फागुन के महीने में आयी थी इस दुनिया में, इसलिये बाबा ने नाम रखा पलाश।झोंपड़ियों में रहने वाले लोग आज भी नाम रखने में ज़्यादा नही उलझते।
6 महीने की थी में पोलियो ने पकड़ लिया था।बस उसके बाद कभी दोनों पैर रख के सीधी नहीं चल पाई।माँ तो जन्म देते ही गुज़र गई थी।
क्रमशः-