कल तक तुम साथ थे,
आज हो बस याद में,
कल तक मेरे पास थे,
आज हो अरदास में,
जानती थी कल भी मैं,
साथ छोड़ कर जाओगे,
आस बस एक थी मन में,
कुछ दिन और साथ निभाओगे।
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माँ भारती के माथे की बिंदी,
अतुलनीय है मातृभाषा हिंदी,
गौरवमयी संस्कृति की प्रतीक,
राष्ट्रभाषा की परिभाषा सटीक,
मुक्त हृदय से करे अंगीकार,
प्रांतीय भाषाओं को कर स्वीकार,
समृद्ध वृहद हिंदी शब्दकोश,
भरे लेखन में नित नया जोश,
हो मैथिली,अवधि या बोली खड़ी,
मनलुभावन प्रत्येक रूप में बड़ी,
'दिनकर',निराला,बच्चन,प्रेमचंद,
महादेवी,सुभद्रा,अमृता प्रीतम,
जैसे प्रिय तुम्हे,इन सबकी कलम,
वैसे ही रखना ,हम पर भी करम
तुम्हारी सेवा में करें नित सृजन नवीन,
तुम्हारे उच्चारण में हो निष्णात प्रवीण।-
हम बन गए बेचारे,
Facebook पर प्यार,
Whatsapp पर इज़हार,
जीत कर ऐतबार
कर गए Bank से पैसा पार,
गज़ब तुम्हारा वार,
डूबे हम मझधार।-
रोज़ रात
वो मुझे गले लगाती है,
यूँ ही माथा चूम जाती है,
बालों में उंगलियां फिराती है,
मुझ से पैर दबवाती है,
मेरे गाल सहलाती है,
मुझे चादर ओढाती है,
मेरा कान खुजाती है,
अंधेरे में मुझ से नज़र मिला,
प्यार से मुस्कुराती है,
कल की उम्मीद बन जाती है,
अपनी भाषा में न जाने,
कितने किस्से सुनाती है,
जाने कैसे,मेरी 2 साल की बेटी,
रोज़ रात मेरी माँ बन जाती है।-
काढ़ा हो चाँद का फूल जैसे,
रात की काली चादर पर,
सुई में सितारे पिरोकर,
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आत्मा की शुद्धि का नियम,
इंद्रियों पर नियंत्रण कायम,
मुक्ति की ओर पहला कदम,
सच्चे सुख का एहसास प्रथम।
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आंखों में चढ़ जाना,
देर तलक जगाना,
तड़के सुबह उठाना,
खूब मेहनत कराना,
सच में तब्दील होने तक,
दीवाना बनाना।-
क्या तू भी ढूंढ रहा कोई मांद,
मुँह छुपा जी भर रोने को,
जैसे ज़ार ज़ार रोइ थी वो,
उन हैवानो से खुद को बचाने को।
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जो हुआ,
जैसे था एक
बुरा सपना,
इसमें तुम्हारा नहीं,
किस्मत का है गुनाह,
माँ अक्सर कहती उसे....
//अनुशीर्षक//-
सांसों की महक तेरी,
टूट भी जाये साँसे जो,
न टूटे नेह की डोरी वो।
जो बांधे मुझे तुझसे,
मिलाए मुझे खुदसे,
तेरे ये नैन नक्श,
दिखाए मेरा अक्स।
तू मेरी परछाई नहीं,
टुकड़ा है दिल का ही,
बस नेमत बन आई,
बिटिया जो कहलाई।-