रिवाज़ अब...सिर्फ मुस्कराने का है...
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तेरी इबादत में मेरे ये मासूम अल्फाज़ है
बेज़ुबान हुँ मैं और मुझमें तेरी आवाज है-
कर्मफल की पुस्तक में...
लिखी है सबकी कर्म कहानी..!
क्या साधु...क्या संत गृहस्थी
क्या राजा... क्या रानी...!!
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तेरी आस...लगाये बैठी हुँ
लज्जा शील...गवाएं बैठी हुँ
रोये रोये नयन...सुजाये बैठी हुँ
अपना सर्वस्व...लुटाए बैठी हुँ
अपना तुझे...बनाये बैठी हु!!!-
मेरे अल्फाजों में
मेरे जज्बातों में
तरंग भरने वाले....
मैं.............तेरी
ख़ामोशियों से अंत हो रही हुँ..!
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अगर तुम सही हाथों में हो तो बेशक हीरा ही हो
और गर गलत हाथों में हो तो पत्थर से भी बत्तर-
बहती जा रही है...ये समय की नदी है
इसे पार करने की...मन में आशा जगी है-
सुनो ना....
मोहब्बत तो नहीं
पर मोहब्बत सा...
जरुरत भी नहीं
पर जरूरी सा...
जाने क्या है
क्यू है
कैसा है
ये रिश्ता
बेनाम सा...
ना मिला
ना खोया
फिर भी
करीब सा...
ना हासिल है
ना जुदा है
मिला हुआ सा
एक रिश्ता है
शायद
यही रिश्ता है...!!!
है ना-