मैं कवियत्री हूँ प्रेम की,
मुझे जीवन भर बस प्रीत चाहिए !
जो रह जाय थोड़ा बहुत सा,
तो मुझे मेरी मृत्यु प्रेममयी चाहिए !
कि दम टूटे जब मेरा,
अंतिम साँस पिया की बाहों में चाहिए !
सुर्ख लाल सजे अर्थी मेरी,
मुझे मेरी मौत सुहागन वाली चाहिए !
रह जाय जो कुछ और बचा,
तो मेरे दाह संस्कार के बाद !
मुझे मेरी अस्तित्व की राख,
विसर्जित प्रेम घाट बनारस में चाहिए !!
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