बड़ी तहज़ीब से झुकती हैं पलकें,
नज़र में कमाल की अदावत लिखी है..
खुले लब तेरे मुतमईन कर रहे हैं,
सम्भाल, इनमें बेनाम दावत लिखी है..
इश्क, इश्क से, इश्क फरमा रहा है..,
न जाने क्यों ये मौसम गरमा रहा है,
इक-इक लफ़्ज़ पढ़ रही है नज़र....
के जिस्म में किसकी लिखावट लिखी है
निगाहों का आलम मदहोश हो रहा है,
सीने का मंज़र कहीं होश खो रहा है..,
नशे-सा सुरूर है अंदर ही अंदर कहीं,
आंखों में शराब की क्या तरावट लिखी है।
अपने पैरों पर खड़ा लड़खड़ा रहा है
दीदार के बाद से कुछ बड़बड़ा रहा है
साँसों में तूफान, रगों में उफान है..,
तेरी आहट ने कैसी आफ़त लिखी है
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