हम इतरा लिया करें कितना भी,
महंगे इत्र, खुशबुएं लगा लगा कर,
पर कभी महक न पाएंगे,
उसके पसीने जितना,
वो चढ़ जाता है कई मंजिलें, कई टन वजन लाद अपने सिर पर,
या तपता रहता है खुली धूप में, खेतों में कुछ दानों के लिए,
या नहा लेता है दुनिया भर के मल में, और डटा खड़ा रहता है,
उस गंदी दुनिया की गन्दगी के बीच...
सोचिए, क्या हम कुछ भी लगा कर महक पाएंगे उनके जितना,
सोचिए, क्या हमारा महकना जायज़ है, उनकी ज़िंदगियों को दूषित कर...-
2 JUN 2021 AT 11:13