मोहब्बत का मर्ज़ भी कमाल का है ग़ालिब, शिकवे भी हैं खयाल भी है दिल में एक छोटा सा मलाल भी है। बेशक़ इश्क़ है सवाल भी है बिछड़े मोहब्बत के लिए यहाँ दिल बेहाल भी है। और बड़े शौक़ से दुबारा खेला था ये दाव इश्क़ का, अरे ग़ालिब बकड़े को यहीं होना, हलाल भी है।
आज भी इंतज़ार है मुझे उस बारिश का; जो एक साल पहले बरस पड़ी थी... वो प्यार की बारिश बड़ी ही अच्छी थी... वो सपने,वो वादे...जो सजाये उस बारिश में हम ने; काश वो लौट आये फिर से इस बारिश में...