QUOTES ON #RAPE

#rape quotes

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1 OCT 2020 AT 16:03


माँ मैं बाहर जा रही हूं, यूँ खड़ी हो दरवाजे पे,
लगाए टकटकी घड़ी की और, मेरा इंतज़ार ना करना,
देर बहुत देर हो जाए, और तेरी बेटी वापस घर ना आये,
तो समझना किसी भेड़िये का आज आहार थी मैं,
थी मैं सूट-सलवार में ही पर, माँ घर से तो बाहर थी मैं,
छाती पे रख हाथ तू, आंसुओं का सैलाब मत बहाना,
देख मेरी ऐसी दशा, खुद को दोषी मत बताना,
ना गलती तेरी कोई, ना गलती मेरे कपड़ो की थी,
तूने माँ जनम ही बेटी दिया, जिसकी तन ढके में भी उभरी हुई थी।

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30 NOV 2019 AT 18:10

नहीं थमती दासतां, जिस्म-औ-रूह ज़ार करने की,
और बाकी है क्या, दरिंदगी की हद पार करने को,

आग फिर उठी हैं, अंगारे दहके हैं आज, चारों तरफ
काट दो उंगलियाँ, जो उठे इज्ज़त तार करने को,

वो बेटी किसकी थी, मत पूछ मुझसे ऐ रहगुज़र
तैयार रह, उन नामुरादों के टुकड़े हज़ार करने को!

आबरू जाने कितनी, हर रोज़ कुचली जाती हैं,
नोंच ले वो गंदी नजरें, उठे जो गंदे वार करने को,

क्यों हो झिझक, क्यों डर बेटियों की आँखों में,
ज़रूरत अब, खुद हाथ अपने हथियार करने को !

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3 OCT 2020 AT 16:46

What A Wonder-fool World

- in caption

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3 DEC 2019 AT 12:44

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9 DEC 2019 AT 20:25

In a classroom...

Teacher: Write about your fear.
All wrote about cockroach,lizard,spider,tiger etc.

The girl out there: I have a vagina,which restricts me from doing anything and everything I wish to.So it's my biggest fear!
The bitter truth that we all are living with.

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19 FEB 2020 AT 18:40




"किसी कहर से कम नहीं थी, उसकी आवाज़ उस रात,
राख के तरह फूँक डाले, उन ज़ालिमों ने उसकी ईज्जत "




 

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8 JUN 2019 AT 3:08

ये अच्छी बात है
जो कातिलों को कोस रहे हो
लेकिन
ये बताओ,
तुम कौन सी बिरादरी के हो
क्या कसम खा सकते हो?
कि
पराई स्त्री को
तुमने आज तलक घूरा नहीं
छींटाकशी कसकर
उसके फंदे नहीं कसे
यदि सच में नाराजगी है तो
अपने दामन को सफेद कर लो
फिर समाज में
एक भी धब्बा जी न सकेगा
करके देखो
यह इतना भी मुश्किल नहीं
इंसां के लिए इंसा होना
मुश्किल हो सकता है क्या?
बात मानो इंसां बनकर देखो
तुम्हें अच्छा लगेगा
सचमुच।

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14 MAY 2018 AT 15:45

❝ मुझे न ❞
तुम्हारी इस धीमी सी सांसो से भी
अब डर लगता है / थोड़ा /
वो क्या है , कि उन हैवानों कि यादे भी
मेरे इस बेजान जिस्म पे
हर पल
बस यूं ही , रेंग सी जाती है
जो मुझे
मेरा / मेरे /ही साथ न होने का एहसास जताती है।

❝ पता है ❞
मुझे न तुम्हारी इन कुलबुलाती सांसो से
इसलिए अब डर लगता है / थोड़ा /
क्योंकि / तुम / उन रेंगती हुई यादों को
बड़ी आसानी से , मुझ पर ही पसीज जाते हो
मेरी जिस्म कि थोड़ी खिल्ली सी भी उड़ा कर
मुझे बस यूं ही , नापाक ठहराते हो।



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30 NOV 2019 AT 17:32

Subjugation of femininity is not masculinity.

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14 APR 2018 AT 20:42

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