ही रात्र बोचते मला, स्वप्नच माझी टोचती मला. डोळ्या वरच्या निद्रेला, ठाम काही मिळेना. का ध्येय माझे हे विचित्र, या रात्रीच्या कळोखातही करती मला प्रज्वलीत.
*परफ्यूम* बचपन में मुझे परफ्यूम का बड़ा शौक था । जब भी पापा के साथ किसी दुकान जाता तो परफ्यूम खरीदने की ज़िद करता था । पापा बिना कुछ कहे खरीद देत थे पर उन्होंने कभी इस्तमाल ही नहीं किया । दिन-ब-दिन मैं बढ़ा होता गया और परफ्यूम का शौक कम होता गया। आज जब मैं कमाने लगा हुं तो परफ्यूम खरीदने का मन नहीं करता , अब पता चल रहा है कि कितना भी महंगा परफ्यूम खरीद लो जो महक मेहनत के पसीने से आती है उसका मोल दुनिया के किसी परफ्यूम में नहीं ।
भूक तो बहुत लगती है लेकिन हर रोज यही सोच कर एक रोटी कम खाता हूं कि क्या उस बच्चे ने जो कड़ी ठंड में भी एक पतली सी फटी पूरानी चादर ओढ़े हुए सड़क पर सोया हुआ है क्या उसने खाना खाया होगा ?