समंदर जाने क्यों पर बार-बार साहिल तक आता है,
उसे ख़ुद में डुबो कुछ उसे भी अपने संग वापस ले जाता है,
सूखे साहिल का हर कतरा सराबोर हो उसके रंग में रंग जाता है,
कुछ खुद में सिमट जाता है और गर कहीं छू लो तो बिख़र जाता है,
अपनी हर लहर के साथ कुछ खुद रेत में जज़्ब हो जाता है
तो कुछ रेत को अपने वजूद का हिस्सा कर लेता है,
हर वापसी पर कुछ यादें साहिल को दे जाता है,
और कुछ बोझ साहिल का अपने साथ ले जाता है,
जिसे कहीं दूर गहरे में दफ़्न कर भूल जाता है,( continued....)
©Princi Mishra
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