कभी कभी ,कुछ बदलने से
बदल जाता है बहुत कुछ ।
तब थोड़ा संभलने से
संभल जाता है बहुत कुछ ।
आज अगर हार ही गए तो क्या हुआ,याद रखो
गमों का गर्दिश भी सिखलाता है बहुत कुछ ।।
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खत्म कुछ भी होता नहीं यहां जब,
तो क्यों खत्म है करना खुद को !!
जिंदगी है समुन्द्र में अगर,
तो क्या नहीं जिंदगी मरुस्थल में !!
परिवर्तित होता है सबकुछ यहां जब,
तो क्या लोग नहीं परिवर्तित होंगे !!
परिवर्तन ही तो करना है खुद में तुझको,
जैसे समुन्द्र हो जाता परिवर्तित,किसी मरुस्थल में !!
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सही वक्त होता है,हर एक बात का
यूँ बेवक़्त नाराज़गी नही दिखाया करते।
छूट जाते हैं लाखों रिश्ते,पीछे उनलोगों के
जो जख्म गहरे लेकर,अक्सर जंगल मे जाया करते।।-
दिल-ए-अज़ीज़ समान ,
गर प्यारी हो जी जान ।
टूट जाए , तो उसे फेकें नहीं ।
कीमती चीजें ले , अनोखे सलीखे से सजाएं ।
इतिहास-ए-खूबसूरती , में चार चांद लगाए ।
टूटा हुआ महसूस करे ,
तो आए , ये नज़्म जिगर उतारे ।
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Kindness and love know no relation for these to be shared.These know a spiritual connection, that we all have with eternity, with the universe that is one. We are one. These must prevail within for all regardless.
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बुरा वक्त नहीं बुरे हालात होते हैं,
दिल साफ हो , तो खुदा भी पास होते हैं।।-
चांद भी , कितना बेबस स लगता है ।
संगीन पलों में भी , चांदनी बरसाता है ।
पर सही है न ,
वरना रात , घनघोर अंधेरे में पलती रहतीं ।
सहर की मुंह-दिखाई को , बरसों तरसाती ।
मौसम भी जानें , कौन सी कसर निकालती ?
ज़िंदगी-ए-पतझड़ में , बाहार से रूबरू कराती ।
बारिश भी , बेवफ़ा सी साबित होती ।
मेरा साथ , कुछ लम्हें दे रुक जाती ।
शाखें , अपने मुरझाएं फूलों को जुदा कर देती ।
बीतें ज़ख्मों को , सजाने की इजाज़त नहीं देती ।
समंदर का पानी , ठहरता नहीं चाहे रस्ते हो पथरीले से ।
हम क्यों रुके फिर , कोई भूचाले ए परेशानी आने पे ?
ये कुदरत , चीख-चीख के तुझे गवाही दे रही ।
तू भी इसी की देन है , फिर कैसी गुमराही ।
---Anuradha Sharma
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Kyu Kahate Ho Kuch
Behtar Nahi Hota,
Sach Toh Yeh Hai...!!
Jaisa Chaho Waisa Nahi hota,
Koi tumhara Saath Na De
Toh Gam Na Karna.....
Khud Se Bada Duniya
Mein Koi Humsafar Nahi Hota...!!
🙂🙂-
फिज़ाओं का रंग,
हमारे ही जिगर सा रंगा ।
तो इस वजह से बहुत ही ज़रूरी,
की अपने दिलों के मिजाज़,
को खुशनूमा बनाए ।
नए तरीके, सलीखे अपनाए,
जो दिल को भाए ।
क्यूंकि आप ही नहीं,
तैयार अगर संभालने को,
कैसे संभालोगे आस-पास,
लम्हातों की रंगीनियत साज़ो को ।
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