चिंता- "देखो संसार, जगत,
एक सा ये ब्रह्माण्ड विगत !!
लज्जा- "देखो तो ! सृष्टि, नक्षत्र,
सम्मुख ईश्वर के,
दुनिया सारी निर्वस्त्र !!
कर्म - "सृजन से मरण तक,
प्राण जैसे तृष्णा में हिरण !!
प्रेम- "पपीहा, कोयल,
विरह में घायल !!
अपनी ही दुनिया में मस्त
"अज्ञानी मूरख,
सूखा जलपोत !!
अपनो से मोह -माया
"बंधु, सखा,
कुछ भी ना रखा !!
भविष्य की आस
"लाल,हरा...
इस "आकांक्षा " में
कि कल सुनहरा,
जीवन मरा !!
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