वक़्त को बेवक़्त टाल के
अलार्म लगे सम्भाल के
सुइयों से बुने जाल के
ई रस्से भी कमाल हैं।।
आंखों पे पहरे डाल के
फिर चश्मे रंग लाल के
और आंसू तब मलाल के
हिस्से भी कमाल हैं।।
मग़ज पड़े निढाल के
गज से फैले लाल के
स्वप्न नवाबी शाल के
किस्से भी कमाल हैं।।
ख़्वाब बेहरूपी ख़्याल के
ला जवाब बगैर सवाल के
फिर खींचे खाल बाल के
ये तो विक्रम ही बेताल है..।!।-
टूट के छूट के बस्ती बाज़ार लूट के..
जाग, भाग, भर ले आग, अंगार साथ कूट के।!
जान ले, मान ले, अधूरी सही, पहचान ले..
कर ले, मर ले, जेबें भर ले, नर्क का सामान ले।!
मलंग है, मृदंग है, ले नाच आगे जंग है..
डट जा, कट जा, खुद में बंट जा, हर टुकड़े को सम्मान दे।!
सफ़र भी तू, सिफ़र भी तू, क्या जिस्म आज कल की रूह..
खेल, झेल, बन गुलेल, और उस पे ख़ुद को तान दे...।!-
ज़्यादा भरी तो खुल ही जायेंगी..
आँखें हैं! धुल ही जायेंगी...
इक अक्स इन में या जहां सारा..
तस्वीरें हैं! घुल ही जायेंगी...!
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बंद इमारतों के गिर्द सुनसान सड़कें आज कौनसे मोड़ टटोल रही हैं..
छोटे शहर के मोहल्लों की गलियां, क्या फ़िर से बाहें खोल रही हैं...?-
ख़ामोशी तो बाहर होगी ही, जब शोर ही सारा अंदर है..
ख़ुद मदारी हो के दिल, ख़ुद ही साला बन्दर है...।!।-
रात तो यूं भी काली ही है, उस पे गहरी फीकी भी क्यूं..
सीधी सी दिमागी दलीलें, उस पे दिल की तकनीकी क्यूं...!-
बंद इमारतों के गिर्द सुनसान सड़कें, कौनसे मोड़ टटोल रही हैं..
छोटे शहर मोहल्ले गलियां, क्या फ़िर से बाहें खोल रही हैं...?
बंद दिलों से हटती मिट्टी अब कौनसे पत्थर तोल रही है..
तराज़ू कितने अब भार सहे, जब दुनिया ही पूरी डोल रही है...!
बंद आवाज़, दबे से साज़ संग कौनसे सुर में बोल रही है..
चिड़िया पिंजरे में या बाहर सही, मिठास हवा में घोल रही है...!
बंद घड़ी भी अपनी सुइयों से कभी कौनसे पल टटोल रही है..
बेवक़्त यूं सख़्त हुई रहमत में, ज़िन्दगी कितनी अनमोल रही है...!।!-
+ve -ve के बीच कहीं अब सिफ़र (0) में अच्छा लगता है..
मंज़िल क्यों ठिकाना क्या.. बस सफ़र में अच्छा लगता है..-
वक़्त को बेवक़्त टाल के
अलार्म लगे सम्भाल के
सुइयों से बुने जाल के
किस्से भी कमाल हैं।।-