कुछ खास नहीं बस एहसास लिखता हूँ,
जिस्म से ही रूह का लिबास लिखता हूँ।
गैरों की नहीं खुद की तलाश लिखता हूँ,
अपनी लाश के लिए हर सांस लिखता हूँ।
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सच कहूं तो अब भी तुम्हारी याद आती है,
पता नहीं क्यों लेकिन फिर भी याद आती है।
मोहब्बत तो हमने भी की थी तुमसे जी भर कर,
पर बेवफाई में हमारी बारी पहले ही आती है।
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कालिख जो पुत रहीं हैं हर दिन मेरे जीने में,
आसूँ कम नहीं हो रहे हैं हर दिन मेरे पीने में।
हामिला हो गई हूँ मैं फिर इस बार महीने में,
दर्द का दरिया पी गई फिर आज इस सीने में।-
रुला देगी आपको उसकी हर चीख,
मांगती रही हो अपने प्राणों की भीख।
समाज नें फिर नहीं ली कोई भी सीख,
आखिर कब तक सहेंगी नारी ये बीख।
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हर मर्ज की दवा हैं आप,
मेरे दिल की दुआ हैं आप।
गैरों का हमसे ताल्लुक नहीं,
पर मेरे लिए खुदा हैं आप।-
मंजर यू मोहब्बत का कुछ अजीबो गरीब है,
हमारी जान ही आज जान लेने के करीब है।-
वो अश्कों का समंदर पीकर चले गए,
वो सबकी होंठों को सीकर चले गए।
वो आज फिर जख्म गहरे देकर चले गए,
वो अपने दिल की दिल में लेकर चले गए।-
हर दिन कुछ मैं नया सीखता हूँ ,
कभी क्रूरता तो कभी दया सीखता हूँ।
हर दिन...✍
कभी नफरत कभी मया सीखता हूँ ,
कभी खामोशी तो कभी बयां सीखता हूँ।
हर दिन...✍
कभी बेहया तो कभी हया सीखता हूँ,
हर दिन कुछ मैं नया सीखता हूँ।
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जिस्म की भूँख कुछ यूँ आग उगल रही है,
बच्ची बूढ़ी जवान सबको लिगल रही है।
दिन बा दिन इंसानियत पिघल रही है,
दरिंदो की दरिंदगी फिर आगे निकल रही है।
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फक्र हैं वो सीनें पर जो सरहद पर गोली खाएँ हैं,
धन्य हैं वो माएँ जिसने ऐसे वीर सपूत जन्माएँ हैं।
प्रणाम हैं उनकों जो अपनें खून से भारत माँ को सजाएँ हैं,
अमर हैं वो जवान जो इस देश के लिये अपने प्राण गवाएँ हैं।-