कृष्णा --- ना यह मिथ्या न मोह है राधे,
यह तो है प्रेम की भाषा।।
निस्वार्थ यह प्रेम तुम्हारा करे मिलन की आशा।।
नजरे व्याकुल है बिन प्रियतम
तुम प्रेम में खोई हुई हो
परमानंद है ये एहसास
जिसमे तुम सोई हुई हो।।-
राधा :- तुम मेरी सांसों में इस कदर हो कान्हा,
जहा देखू वही तुम हो।।
तुम इतने मनमोहक क्यों हो?
_Jai
कृष्णा:- राधा में कृष्ण समाए है,
कृष्ण में है राधा।।
तुम्हे अगर दिखू मैं मनमोहक
ये तुम ही तो हो राधा...
_Meera_writes-
बैठी कबसे आस में कान्हा
रैना बीती रात भिगोई
हरी हरी बस सिमरे सांसे
नजरे कबसे जागी ना सोई
इतना भी ना देर लगाओ
मोहन मोरे जल्दी आओ।।-
राधा---- मोहन
ऐसा मोह लिया है कान्हा तुमने,
सोऊ तो तुम्हे नीहारू,
जागू तो तुम्हे पाऊ,
रुकू तू तुझ संग रूकू,
चलू तो तू भी संग चले,
सच है ? या मिथ्या ?
बताओ ना कान्हा।।-
For me, 🌒 believes in travelling around 🌟 s & lighting in Darkness..
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तुझी में में,
मुझी में तू,
अगर घूम हो जाऊ में कहीं,
तो तुझे में मिलू।।
राधे राधे।।
(राधा को ढूंढ लो कान्हा मिल जाएंगे,
या कान्हा से प्रीत लगोयो तो भी राधा जी मिल जाएगी।।)-
मोहन निकल पड़े हैं,
दर्श को तेरे मीरा,
देख के तेरी प्रीत,
तू बोले तू उस बीन अधूरी,
वो बोले वो तुझ संग पूरा।।
राधे राधे।।-