कोई माटी के दीप जलाए
कोई पीतल के तो कोई चांदी के
दीप को मन के क्यों न रोशन करें
आज समाज में सभी मिल के
तरह तरह का मीठा आया घर में
बहुमूल्य उपहार भी बहुत से
न मिठास थी न ही आनंद उन में
जो था सगे संबंधियों के मिलन में
ये कहाँ चले आए हैं हम
और आगे कहाँ तक जायेंगें
कहीं इतनी दूर न निकल जाएं
कि पुनः लौट ही न पाएं
दीपावली के उस दीप को
प्रज्वलित करने
बेचैनी से प्रतीक्षा करते हैं
जिस के लिए-
31 OCT 2024 AT 11:17