उनके लिए इश्क...
महज एक कारोबार रहा...
इसलिए मुझे हर दफा...
अपनी बारी का इंतजार रहा...
उनका तो हर दफा...
मेरे लिए इंकार रहा...
फिर भी मुझे हर दफा....
उनसे प्यार, बेहद प्यार रहा...-
मेरी आशिकी में साहब...
एक वो दौर भी आया था...
जब उसने महज तस्वीर नहीं...
मेरा दिल भी जलाया था...-
यह थे मेरे चंद लफ्ज़ महज...
पर तुमने गुनगुनाया तो गजल हो गई...
जिंदगी एक थी समस्या जटिल...
पर तुम साथ आई तो सरल हो गई...-
मेरे उजड़े हुए गुलशन...
की बहार थी तुम...
महज दिल्लगी नहीं...
मेरा सच्चा प्यार थी तुम...-
महज चंद रातों की चांँदनी...
मेरे संग बिताया उसने...
फिर अपने हाथों हमारे प्रेम का...
जबरन गला दबाया उसने...-
वो साथ हैं मेरे...
मगर...
बहुत दूर उनसे हैं...
जो महज याद में मेरी...
फिर भी...
बेहद पास उनके हैं...-
अदायें ये हसिनाओ के अरसे पुरानी है,,
करती दिवाना कितनो को,,,,
पूछों तो कहती है,महज ये बीमारी है ।-
महज अपना प्रेम नहीं...
सर्वस्व तुम्हें मैंने माना है...
तुम्हारी नफरत से ज्यादा...
ये मेरा इश्क़ पुराना है...-
महज साँस लेने को...
जिंदगी समझते हो...
तुम वही हो ना...
जो इश्क़ को...
गंदगी समझते हो...-
गुनाहों के बादशाह
बेगुनाही पे अकड़ता है
मुझे जाओ तो छोड़कर
अगर दिल चलता है-