बुझने वाले चराग़ों को
शमा का पैग़ाम लिख दिया,
रौशनी को पिघलते हुए
मोम का इनाम लिख दिया।
एक शख़्स की मोहब्बत
में पड़ कर, आशिक़ हो कर,
हमने बेसबब अपनी तबाही
का इंतिज़ाम लिख दिया।
किसी ने पूछा आख़िर
क्या बला है ख़ुदा-ओ-ख़ुदाई,
हमने मुस्कुरा कर अपने
महबूब का नाम लिख दिया।
गिला-ओ-शिकवा-ओ-
रंज-ओ-हिक़ारत मसीहा हैं,
मक़्तल में ही क़त्ल का
तरीका सरे-आम लिख दिया।
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