हर दिन मन में एक तूफ़ान सा उठता है,
उसके बाद का मंजर देखने से भी डर लगता है..
ये तूफ़ान कहीं सब तबाह ना कर दे,
ये फिक्र अब दिल में एक शीशे सा चुभता है....
इसे बताना मुश्किल है,
और इससे निकल पाना भी आसान नहीं लगता है....
खुद के अंदर एक डर का घर,
और उसमे गली की किसी आंटी का कब्जा लगता है....
जो हर बार किसी society समाज के बारे में बतातीं है
और मायूसी बढ़ा जाती है !!
यु तो तूफ़ान कुछ कर नहीं पायेगा,
गर खुद में है हिम्मत तो
तूफ़ान टिक भी नहीं पायेगा...
समय लगता है लेकिन, सब बदल जाता है....
ये घर है अपने ही दिल का,
क्या पता कब किसी आंटी की जगह,
खुद का नया version ले आएगा...
वैसे तो दुनिया बहुत कुछ तो कहती है....
लेकिन एक तुम्हारी मुस्कान के बाद से वो चुप ही रहती है।
इस तूफान का अंत अबकी बार मायूसी नहीं है,
क्यूंकि आजाद परिंदे की ऊंची उड़ान अभी बाकी जो है-
7 MAR 2024 AT 1:52