डूब कर स्मृतियों में,
आपकी !
❣️
मैं इन पन्नो में उतार,
देती हूँ !
बस कहने की ही,
कवयित्री हूँ मै !
अपनी कविता की,
हर पंक्ति में,
❣️
आपको ही तो यार बस,
मैं पिरोह देती हूँ !!-
यदि मुझे किसी से प्रेम होगा तो
ज़रूर वो लेखिका से होगा
और
सबसे पहले मैं उसकी अंगुलियों को चूम कर
फिर उसकी आँखो को...चूमूंगा
एक नवीन प्रेम-ग्रंथ के लिए
वो देखेगी और लिख देगी
मुझे...-
"हर बात कह कर बतानी पड़े तो तेरे उस तजुर्बे का क्या?
तू तो कहा करता था कि इंसानों कि परख है तुझे "-
कठिन खेल हैं प्रीत के
पहले हासिल नहीं
हासिल महफूज़ नहीं
फ़िर
नखरे हज़ार हैं महफूज़ के-
छोड़ दो घूंघट
ज़माना क्या ही कह लेगा
तुम्हारे जिस्म पे अवांछित
हाथ किए हैं बर्दाश्त
तो ये भी सह लेगा
सहता है ज़माना
तुम पर लगा हर जुर्माना
तुमपे आई कोई विपदा तो
ज़माना क्या ही कर लेगा!
छोड़ दो घूंघट
ज़माना क्या ही कह लेगा।
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कलम से चिंगारी नही प्यार और खुशी बरसाना है,
नदी का जो रूख मोड़ दे,वैसी लेखिका कहलाना है।
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आकर हर रोज रात पकड़कर मुझे कसकर,
तुम मुझे अपनी बाहों में सुलाया करते हो
फिर फेरकर अपनी उंगलियों को मेरे सर पर,
तुम मेरे बाल बड़े प्यार से सहलाया करते हो
और जब छूना चाहूँ मैं तुम्हें अपने हाथों से,
तुम अचानक से कही गुम हो जाया करते हो
सुनों.. सुकून मिलता है या कुछ ओर ही है,
जो अपनी एक झलक की खातिर तुम मुझे
हर एक पल कुछ इस तरह तरसाया करते हो....-
इससे बेहतर और क्या हो, जब शाम हो
और बरसात हो
इससे बेहतर और क्या हो, जब तुम साथ हो,
दिल के पास हो
इससे बेहतर और क्या हो, जब हाथो मे
हाथ हो और कोई बंदिशे साथ ना हो
बस दिल का ख्याल हो
और बरसात हो।।।-