बेतरतीब सी है मिरे दिल की कुछ ख़्वाहिशें
जानें मुकम्मल होना, पहले किसका लिखा है
रोज़- ओ- शब में ग़ुमशुदा है कहीं सभी चेहरे
पर इस चाँद में मुझे, किसका चेहरा दिखा है
जुबान पर हमनें लगाम रखना सीख लिया
मग़र निग़ाहों ने कहना, सब किससे सीखा है
हम आमादा बैठे है चलने को सियाह रातों में
ना - गहाँ ये रास्ता मिरा किसने रोक रखा है
ख़ास बात नहीं राते होती ही है सियाह भरी
शब-ए-माह में चमकता, सितारा क्यूं दिखा है
मुस्तकबिल में लिखा कौन जानें ए "खामोश"
मग़र ग़मों का मुतख़ब होना कितना लिखा है-
आंख खुलते ही ग़र ना देखूं तुझे,
मन सिहर सा जाता है..
आखिर ख़ुदा से सैकड़ों,
अर्जियां लगाकर मांगा है तुझे...-
झुक गई मिज़गान-ए-दराज़, उतर आई लबों पर हंसी..
दिल दीदार-ए-मोहब्बत चाहे, मग़र लफ़्ज़ों को जगह कहां...-
जब अरसे बाद आया ना जवाब उनका ,
बे-मन ही सही रास्ता हमनें भी मोड़ लिया ।
सीखा हैं वक्त से अपनी मंज़िल की चाहत
में, न जानें कितनों को पीछे छोड़ दिया ।।-
यादों के साये बड़े बेरहम से होने लगे है..
रातें तो बीत गयी, पर ये साये छटते नहीं...-
रास्ते के मुसाफ़िरों से दिल लगाया नहीं करते
यूं हीं हर किसी पर इश्क़ लुटाया नहीं करते-
यूं ही कोई नहीं लिख देता ज़ज़्बातों को बहुत ख़ूब
ज़रा देखिए दिल में जल रही होगी चिंगारी कोई-
नहीं मालूम क्यूं हुआ, किसे हुआ ये ग़म-ए-इश्क़
मग़र ये कूचों में हमारी आवाज़ह क्यों बढ़ने लगी-
तख़य्युल में सिर्फ उसका मुस्कुराता चेहरा नज़र आया था।
किसी ने याद दिलाया तुम ख़ुद मुस्कुराना भुल गये हो।।-
वो करती रही आराईश उसके इंतज़ार में ,
टूटे आईने में ख़ुद को देख कर..
यक़ीनन अस्हाब आया उसका ,
मग़र अब दिल टूटा है उसे देख कर...-