है छूना आसमाँ
तो क्षितिज तक चलना होगा।
सूरज होने शमा को,
और भी जलना होगा।
मिलेंगे रोड़े राह में,
जो मंज़िलें ऊँची होंगी
हैं पैमाने मंज़िल के,
खरा तो उतरना होगा।
चुनौतियाँ सीढ़ियाँ हैं,
मंज़िल तलक ये जाती हैं
कदम हर एक पर रख,
शुक्रिया कहना होगा।
जो ख्वाहिश वृक्ष होने की है,
ऐ बीज तेरी
दफन ज़मीन में होकर
तुझे गलना होगा।
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