कभी ख़ुद को न झाँका उसने,
दूसरों की कमियां निकालता रहा।
खुद भेड़िया बन कर घूमें,
अपनों को बुरी नज़र से बचाता रहा।
अपनी माँ की पूजा करता,
दूसरो को माँ की गाली निकालता रहा।
अपनी बहन की राखी के फर्ज़ को निभाता,
दूसरों की बहन की आबरू में हाथ डालता रहा।
अपनी बीवी को काले वस्त्र पहनाता,
दूसरों की बीवियों को बुरी नज़र से झाँकता रहा।
अपनी बेटी को अपने से दूर ना करता,
और दूसरों की बेटी को अकेले में ताड़ता रहा।
जब मिला ख़ुद के जैसा कोई,
तब उसके जुल्मों पर हाहाकार मचाता रहा।
ये बात समझ न आई इह्सार #ihsaar
जब डर था उसे इस बात का
तो वो अपनों और दूसरों में क्यूँ
फर्क निकालता रहा।
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