समाज में,
भले ही कुछ भी ना बचे,
लेकिन यदि बची रहे
मानवता,प्रेम,दया,
सहयोग,विश्वास और आस
मान लूंगी,
पूरी तरह विकसित है सभ्यता,
और बाकी है उसमें उर्वरता,
बोये जा सकते हैं बीज समृद्धि के;
लेकिन यदि मृत्युशैया पर लेटी हो
इनमें से एक भी;
मान लूंगी,
पतन हो चुका है सभ्यता का,
भले ही बाहरी आकर्षण;
कितना भी भ्रमित कर ले।
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