Aisa nhi h ki maine khud ko smjhaya nhi
Pr vo tera ankho m ankhe daal dekhna use
Uppr se vo chehre ki muskurahat mujhe jeene nhi deti
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मुश्ताक़ ए दीद , बार में रखा हुआ दिया
है तेरे इंतेज़ार में रखा हुआ दिया
काग़ज़ की नाव ले के हम इस तरफ़ खड़े हैं
तुम हो नदी के पार में रखा हुआ दिया
मह़ज़ूफ़ हो रहे हैं उसकी इनायतों से
जैसे हो तीन - चार में रखा हुआ दिया
महफ़िल की शान थे हम बैठे हैं आज जैसे
उजड़े से इक दयार में रखा हुआ दिया
लोगों की भीड़ है अब , हर सू जनाब के
जैसे कोई मजा़र में रखा हुआ दिया
हम भी कभी 'ह़यात' महलों मैं थे मकीं
अब हैं सरे बज़ार में रखा हुआ दिया
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इस मौसम-ए-खि़जां में फिर गुल खिले कोई
हम चाहते हैं आंख को मंज़र मिले कोई
इज़्ज़त खुदा के हाथ है पड़ता नहीं है फ़र्क़
रुसवा भले जहां में करता फिरे कोई
अब तो हमारे घर के दुपट्टे भी ले गए
अब तो हमारे खू़न में तूफ़ां उठे कोई
सब अपने ध्यान में हैं परवाह नहीं किसी को
कोई मरे जहान में या फिर जिये कोई
घर बेच कर जहेज़ भी बेटी को दे दिया
अब और इस से बढ़ कर क्या-क्या करे कोई
नाराज़ मां है घर तू जन्नत तलाशता है
ऐ काश इस गुनाह से रोका करे कोई
हूं कैद मैं , नसीब के पिंजरे में ऐ 'हयात'
पर हौ़ंसला निजात का देता रहे कोई-
आंखो से अश्क रात में छलका करे कोई
हमको तुम्हारी खा़ति़र रुसवा करे कोई
चेहरे के ज़र्द-पन से कोई आशना तो हो
होंठों की तिशनगी को समझा करे कोई
गर हम चले जो रूठ कर ऐसा भी कोई हो
हमको भी लाड़-प्यार से रोका करे कोई
हम भी किसी को देख के बेताब हो उठें
हमको भी इस अदा से देखा करे कोई
रंगीन इस जहां में सब कुछ है बे-मज़ा
आये कोई ह़यात में धोखा करे कोई
हमने भी कुछ ख़्याल सजाएं है रात भर
हमको भी रात दिन अब सोचा करे कोई
बरबाद हो गए हम नफ़रत की आग में
अब तो मिरी ह़यात पे चर्चा करे कोई
हम भी किसी की याद में आंखों को नम करें
हमसे भी ऐ "ह़यात" रूठा करे कोई-
Those feeling ,that make you do something to achieve them
Which let you sleep easily-
किसी बद'दुआ़ का सिला है मुह़ब्बत
बला है , बला है , बला है ,, मुह़ब्बत
दिली ख़्वाहिशों पर टिकी ये इ़मारत
ह़वेली नहीं इक क़िला है मुह़ब्बत
अगर साथ कि़स्मत हो मिल जाए वरना
गमों का कोई सिलसिला है मुह़ब्बत
कोई इस को रोको संभालो किसी से
ये दीवाना करने चला है मुह़ब्बत
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Kisi zamane me , mere wo sath me thi ...
Wo raazi meri har baat me thi ,
Mera sahara ban gayi thi uski muskaan ,
Mere khatir wo muskurati har ek mulaqat me thi.-
ऐसी कैसी बे - बसी जो बाति़लों से मिल गए
ये भंवर , तू़फा़न सारे साहि़लों से मिल गए
कैसे मुमकिन है बसेरा आंख की इस झील में
ख़्वाब थे दो- चार अब तो का़फि़लों से मिल गए
बैठने - उठने लगे हो ह़ाकीमों के दर्मियां
तुम भी कैसे यार पागल जहिलों से मिल गए
हि़क्मत-ए-अ़मली से हमने यूं संभाला इश्क़ को
लोग कुछ उतरे हुए अब फिर दिलों से मिल गए
हमने भी सीखी सियासत चंद जौहर आ गए
थोड़ा रोए और फिर हम बादलों से मिल गए
बाद मुद्दत ही सही़ पर तेरे दर से आ लगे
आज फिर भटके मुसाफ़िर मंजि़लों से मिल गए
ऐसी कौ़मों से ता'ल्लुक़ है कि जिनके ऐ 'हयात'
पेशवा बिक कर लुटेरों , का़तिलों से मिल गए-
کوئی منظر مري آنکھوں کو ایسا بھی دکھائی دے
مرا دشمن مرے حق میں سرِ محفل گواہی دے
کئیں آنکھیں تری جانب مدد کو اٹھ رہی ہیں اب
ہمیں یا رب زمانے کے مظالم سے رہائی دے
कोई मंज़र मिरी आंखों को ऐसा भी दिखाई दे
मिरा दुश्मन मेरे ह़क़ में सरे मह़फ़िल गवाही दे
कईं आंखें तेरी जानिब मदद को उठ रही हैं अब
हमें या रब ज़माने के मज़ालीम से रिहाई दे
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